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किसी देश की मुद्रा क्या है

किसी देश की मुद्रा क्या है
इतना ही नहीं, रुपये ने G10 मुद्राओं के मुकाबले 2015 के बाद से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। G10 ऐसी 10 अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को सम्मिलित रूप से दिया गया एक अनौपचारिक नाम है, जो अंतरराष्ट्रीय कारोबार में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं। G10 में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के डॉलर के अलावा येन, पाउंड स्टर्लिंग, यूरो किसी देश की मुद्रा क्या है और स्विस फ्रैंक, स्वीडिशन क्रोना, डेनिश क्रोन तथा नॉर्वे क्रोन शामिल हैं।

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डॉलर के मुकाबले कैसे तय होता है रुपये का रेट, यहां जानें पूरा गणित

Rupee Exchange Rate रुपये की मजबूती और कमजोरी की क्या वजह है। साथ ही सवाल उठता है कि भारतीय रुपया की मजबूती और कमजोरी कौन तय करता है। साथ ही इसे तय करने का फॉर्मूला क्या है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..

नई दिल्ली, टेक डेस्क। भारतीय रुपया सोमवार को अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया था। जब डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 78 रुपये हो गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय रुपया की मजबूती और कमजोरी कौन तय करता है। साथ ही इसे तय करने का फॉर्मूला क्या है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..

क्या होता है एक्सचेंज रेट

जिस मूल्य (दर) पर एक देश की मुद्रा दूसरे देश की मुद्रा से बदली जाती है उसे ‘एक्सचेंज रेट’ कहते हैं। किसी भी देश की करेंसी का मूल्य बाजार में उसकी मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। जैसे एक सामान्य व्यापारी सामान की खरीद-फरोख्त करता है, वैसे ही फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय होता है। एक्सचेंज रेट दो प्रकार के हो सकते हैं- स्पॉट रेट यानी आज के दिन विदेशी मुद्रा का मूल्य और फॉरवर्ड रेट यानी भविष्य में किसी तारीख के लिए एक्सचेंज रेट।

Explainer : क्‍यों कोई देश जानबूझकर कमजोर बनाता है अपनी करेंसी, कहां और कैसे होता है इसका फायदा?

डॉलर अभी 22 साल की सबसे मजबूत स्थिति में है.

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 24, 2022, 15:30 IST

हाइलाइट्स

अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा हाल में ही चीन दो बार कर चुका है.
एक बार 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी.किसी देश की मुद्रा क्या है
साल 2019 में फिर चीन ने डॉलर के मुकाबले युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी.

नई दिल्‍ली. अमूमन किसी देश की करेंसी के कमजोर होने को उसकी बिखरती अर्थव्‍यवस्‍था का सबूत माना किसी देश की मुद्रा क्या है जाता है, लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि कुछ देश जानबूझकर अपनी मुद्रा को कमजोर बनाते हैं. एक बारगी तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल होता है कि जहां दुनियाभर के देश अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने की जुगत में लगे रहते हैं, वहीं कोई देश क्‍यों अपनी करेंसी को कमजोर बनाएगा, लेकिन यही सवाल जब बाजार और किसी देश की मुद्रा क्या है कमोडिटी एक्‍सपर्ट से पूछा तो जवाब चौंकाने वाले थे.

आईआईएफएल सिक्‍योरिटीज के कमोडिटी रिसर्च हेड अनुज गुप्‍ता का कहना है कि ज्‍यादातर ऐसे देश अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर बनाते हैं, जिन्‍हें निर्यात के मोर्चे पर लाभ लेना होता है. यानी अगर किसी देश की करेंसी कमजोर होती किसी देश की मुद्रा क्या है है, तो उसी अनुपात में उसका निर्यात सस्‍ता हो जाता है और उद्योगों के पास ज्‍यादा उत्‍पादन के मौके बनते हैं. दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि ज्‍यादातर ग्‍लोबल लेनदेन डॉलर में होता है और जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो उसका उत्‍पादन भी डॉलर के मुकाबले सस्‍ता हो जाता है और ग्‍लोबल मार्केट में उसकी मांग बढ़ जाती है.

क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार, क्या हैं इसके मायने ?

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कुल मिलाकर विदेशी मुद्रा भंडार में केवल विदेशी बैंकनोट, विदेशी बैंक जमा, विदेशी ट्रेजरी बिल और अल्पकालिक और दीर्घकालिक विदेशी सरकारी प्रतिभूतियां शामिल होनी चाहिए. हालांकि, सोने के भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा राशि भी विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा होता है. यह व्यापक आंकड़ा अधिक आसानी से उपलब्ध है, लेकिन इसे आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय भंडार या अंतर्राष्ट्रीय भंडार कहा जाता है.

विदेशी मुद्रा भंडार को आमतौर पर किसी देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. आमतौर पर, जब किसी देश के मौद्रिक प्राधिकरण पर किसी प्रकार का दायित्व होता है, तो उसे अन्य श्रेणियों जैसे कि अन्य निवेशों में शामिल किया जाएगा. सेंट्रल बैंक की बैलेंस शीट में, घरेलू ऋण के साथ विदेशी मुद्रा भंडार संपत्ति है.

रुपए की कमजोरी में छिपा है इसकी तंदुरुस्ती का राज

भुवन भास्कर

भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 80.11 का अपना सबसे निचला स्तर छूने के बाद फिलहाल लगभग 50 पैसे मजबूत होकर एक दायरे में स्थिर होता दिख रहा है। लेकिन यह मान लेना कि रुपये के लिए सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है, थोड़ी जल्दबाजी होगी। वैसे तो एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा के मुकाबले मजबूत या कमजोर होना विशुद्ध तौर पर आर्थिक घटना है, लेकिन राजनीतिक शोशेबाजी और जुमलों के दौर में अक्सर रुपये की कमजोरी को राष्ट्रीय स्वाभिमान पर प्रहार के रूप में भी उछाल दिया जाता है और इसलिए कई बार रुपये का कमजोर होना सत्तारूढ़ दल के लिए आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक चिंता का सबब बन जाता है।

रुपया यदि डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रहा है, तो उसके क्या मायने हैं या फिर कमजोर हो रहा है, उसका क्या मतलब है? चीन दशकों से अपनी मुद्रा युआन को कृत्रिम रूप से कमजोर रख कर अमेरिका के खिलाफ भुगतान संतुलन को अपने पक्ष में रखने में कामयाब रहा है। इसको समझने किसी देश की मुद्रा क्या है की आवश्यकता है। जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो इसका मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पाद ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी भाव पर उपलब्ध होते हैं।

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इसके उलट यदि कोई मुद्रा डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही है, तो उसका आयात सस्ता होगा और निर्यात महंगा होगा। जाहिर है कि भुगतान संतुलन किसी देश की मुद्रा क्या है के मामले में इसके कारण मजबूत मुद्रा वाला देश हमेशा नुकसान में रहेगा।

इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि किसी वस्तु का मूल्य भारत में 80 रुपये है तो अमेरिकी बाजार में वह 1 डॉलर का होगा, लेकिन यदि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होकर 40 रुपये का हो जाए, तो वही वस्तु अमेरिकी बाजार में 2 डॉलर की हो जाएगी। यह आंकड़ा सिर्फ प्रतीकात्मक और समझाने के लिए है क्योंकि देसी मूल्य में एक्सपोर्ट होने पर ट्रांसपोर्ट, टैक्स इत्यादि कई लागत जुड़ती जाएंगी। लेकिन अनुपात तो इसी तरह रहेगा।

डॉलर के मुकाबले रुपया 20 साल के सबसे निचले स्तर पर, क्याें भारतीय मुद्रा में आई इतनी गिरावट

डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा अपने 20 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। आज शुरुआती कारोबार के बाद रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 51 पैसे गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 80.47 रुपए पर खुला है। बुधवार को भी रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 26 पैसे गिरकर 80 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया था।

क्या है कारण

महंगाई पर काबू पाने के लिए शीर्ष अमेरिकी केन्द्रीय बैंक की ओर से लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के कारण रुपये में गिरावट हुई। अमेरिकी केन्द्रीय बैंक द्वारा लगातार तीसरी बार ब्याज दर बढ़ाया गया। अमेरिकी बैंक द्वारा ब्याज दर बढ़ाने पर डॉलर की कीमत बढ़ जाती है जिसके कारण डॉलर धीरे धीरे मजबूत होने लगता है। जिसके कारण रुपया तथा दूसरे विदेशी मुद्रा में गिरावट देखी जाती है।

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