सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है?

विदेशी मुद्रा के मुद्रा व्यापार के सिस्टम के बारे में जानें
यदि आप फाइनैंस के छात्र हैं और अगर आप दुनिया के सबसे उत्साही बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहना चाहते हैं तो यह आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आपको विदेशी मुद्रा के मुद्रा व्यापार का गहरा ज्ञान हो। बहुत से लोग सोचते हैं कि विदेशी मुद्रा बाजार में व्यापार करना आसान है लेकिन विदेशी मुद्रा की दुनिया में प्रतिस्पर्धी बने रहना इतना आसान नहीं है जितना यह दिखता है। आपको साइट से विश्वसनीय सूचना की विशाल राशि इकट्ठा करने की जरूरत है जो कि आपको रेखांकन और चार्ट के रूप में कुछ महत्वपूर्ण उपकरण उपलब्ध कराती है। कुछ अन्य चीजों है जो कि आपको विदेशी मुद्रा प्रणाली की मुद्रा विनिमय का अध्ययन करते हुए ग़ौर करनी चाहिए, इस प्रकार हैं:
यह महत्वपूर्ण क्यों है कि शीर्ष गुणवत्ता विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली का चयन करें जो कि आपको अमीर बना देगा?
आप को कई कारणों के लिए उच्च गुणवत्ता विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली लेने की जरूरत है:
- एक व्यापार प्रणाली है जिसको पूर्णता के साथ बनाया गया है, आपका समय बचा सकती है। अगर आप आपके लिए एक अच्छी व्यापार प्रणाली को देख रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि जिस तरह से आप चाहते हैं कि यह काम करे वास्तव में यह उसी तरह से काम करे।
- एक अच्छी और विश्वसनीय व्यापार प्रणाली आपको उपयोगी जानकारी प्रदान कर सकती है और यह वास्तव में अधिकतम लाभ प्राप्त करने के अवसरों में वृद्धि कर सकती है।
कुछ महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा के मुद्रा मिथकों से सतर्क रहें
यदि आप विदेशी मुद्रा साहित्य के शौकीन हैं और यदि आप विदेशी मुद्रा चर्चा संगोष्ठी में नियमित रूप से जाते हैं तो आपको जल्दी ही एहसास हो जाएगा कि वहाँ कुछ चीजें हैं जो वास्तव में विदेशी मुद्रा कारोबार में काम नहीं करती हैं। वहाँ कई विदेशी मुद्रा मिथक हैं जो कि विदेशी मुद्रा के मुद्रा बाजार में लम्बी अवधि से हैं, लेकिन यह मिथक बिल्कुल सच नहीं हैं।उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- 85% लोग विदेशी मुद्रा में अपने निवेश खो देते हैं यदि वे इस रोबोट एक्स की मदद नहीं लेते।यह पूरी तरह से एक गलत अवधारणा है क्योंकि वहाँ विदेशी मुद्रा व्यापार में जादू की गोलियां हैं और हर रोबोट के कुछ गुण और दोष हैं।
- विदेशी मुद्रा व्यापार सीधे आपकी मानसिक दशा से संबंधित है। यह भी एक गलत अवधारणा है क्योंकि आप केवल अपनी मानसिक दशा की मदद से ही विदेशी मुद्रा का खेल नहीं जीत सकते। विदेशी मुद्रा के कारोबार में बड़ी सफलता प्राप्त करने के लिए आपके पास डेमो खाते, विश्वसनीय प्रणाली और महत्वपूर्ण उपकरण के होने की जरूरत है।
विदेशी मुद्रा प्रणाली में मुद्रा व्यापार का क्या मतलब होता है?
मुद्रा व्यापार में बहुत सारे जटिल पहलु शामिल है क्योंकि यह ग्लोब की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ सीधे कार्यवाही करती है। लोग यह भी सोचते हैं कि मुद्रा व्यापार जुआ की तरह है, लेकिन वास्तविकता में, मुद्रा व्यापार एक विज्ञान है और इसकी ठीक से समझ होनी जरुरी है।
दुनिया भर में आमतौर पर मुद्रा परयाद का जोड़े में व्यापार किया जाता है। मुद्रा जिसमें कि आप व्यापार करना चाहते हैं आधार मुद्रा के रूप में जानी जाती है और दूसरी मुद्रा काउंटर मुद्रा के रूप में जानी जाती है। प्रमुख मुद्रा जोड़े जो कि अत्यदिक और प्रायः व्यापार कर रहे हैं उन में से कुछ इस प्रकार हैं:
आखिर, अपने पास विदेशी मुद्रा का भंडार जमा क्यों करता है रिजर्व बैंक, क्या आप जानते हैं?
विदेशी मुद्रा या विदेशी मुद्रा भंडार अनिवार्य रूप से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित के रूप में रखी गई संपत्ति है, जिसका इस्तेमाल आर्थिक संकट या आड़े वक्त में किया जाता है. आमतौर पर इसका इस्तेमाल विनिमय दर का समर्थन करने और मौद्रिक नीति बनाने के लिए किया जाता है.
नई दिल्ली : किसी भी देश के लिए विदेशी मुद्रा भंडार उतना ही आवश्यक है, जितना कि किसी घर में सोना का जमा होना जरूरी है. विदेशी मुद्रा भंडार जमा रहने के बाद कोई भी आवश्यक वस्तुओं का आसानी से आयात करने में सक्षम होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक संकट की स्थिति या आड़े वक्त में ठीक उसी तरह काम करता है, जिस तरह किसी घर में पैसों की कमी होने या विपत्ति के समय में सोना या गहना काम आता है. श्रीलंका की विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आने का ही नतीजा है कि उसे आज आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. महंगाई चरम पर है और दूसरे देशों से आवश्यक वस्तुओं का आयात पूरी तरह से प्रभावित है. विदेशी मुद्रा भंडार जमा करने की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के कंधों पर होती है.
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार
विदेशी मुद्रा या विदेशी मुद्रा भंडार अनिवार्य रूप से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित के रूप में रखी गई संपत्ति है, जिसका इस्तेमाल आर्थिक संकट या आड़े वक्त में किया जाता है. आमतौर पर इसका इस्तेमाल विनिमय दर का समर्थन करने और मौद्रिक नीति बनाने के लिए किया जाता है. भारत के मामले में विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, सोना और विशेष आहरण अधिकारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का कोटा शामिल है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय प्रणाली में मुद्रा के महत्व को देखते हुए अधिकांश भंडार आमतौर पर अमेरिकी डॉलर में रखे जाते हैं. कुछ केंद्रीय बैंक अपने अमेरिकी डॉलर के भंडार के अलावा ब्रिटिश पाउंड, यूरो, चीनी युआन या जापानी येन को भी अपने भंडार में रखते हैं.
क्यों जरूरी है विदेशी मुद्रा का भंडारण
बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी प्रकार के लेनदेन अमेरिकी डॉलर में तय किए जाते हैं. आयात का समर्थन करने के लिए किसी भी देश के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का होना आवश्यक है. अगर किसी देश के पास विदेशी मुद्रा या उसके पास डॉलर नहीं होगा, तो वह आवश्यक वस्तुओं का दूसरे देशों से आयात नहीं कर सकता है, जैसा कि श्रीलंका के साथ हुआ. श्रीलंका में आर्थिक संकट आने के पीछे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आना है. कोरोना महामारी के दौरान उसका पर्यटन उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ. विदेश पर्यटकों के आगमन थम जाने से श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की कमी आ गई, जिसकी वजह से वह अपने देश की जनता की रोजमर्रा की वस्तुओं का आयात करने में विफल हो गया. इसलिए महंगाई चरम पर पहुंच गई.
भारत ने श्रीलंका को दिया सहयोग
आलम यह कि आर्थिक संकट के इस दौर में भारत में पेट्रोलियम पदार्थ और खाद्य पदार्थों के अलावा दूसरे प्रकार की सहायता भी उपलब्ध कराई है. वहीं, अगर उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होता, तो संकट के इस दौर में उसका आवश्यक वस्तुओं का आयात प्रभावित नहीं होता और देश में महंगाई चरम पर नहीं पहुंचती.
मौद्रिक और आर्थिक नीति बनाने में विदेशी मुद्रा सहायक
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार घरेलू स्तर पर मौद्रिक और आर्थिक नीतियां तैयार करने में सरकार और रिजर्व बैंक के लिए अहम भूमिका निभाता है. विदेशी पूंजी प्रवाह में अचानक रुकावट आ जाने की वजह से हमारी आर्थिक और मौद्रिक नीतियां प्रभावित होने के साथ ही आम जनजीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर घर में जब पैसे और पूंजी या फिर आमदनी में कमी आ जाती है या किसी की नौकरी अचानक छूट जाती है, तो घर में रखा हुआ सोना ही आड़े वक्त में काम आता है. सोना या गहनों को बेचकर घर का मुखिया परिवार की जरूरतों को पूरा करता है और स्थिति सामान्य होने के बाद वह फिर उतने ही या उससे अधिक सोने का भंडारण कर लेता है. नकदी विदेशी मुद्रा जमा करने से इस तरह की चुनौतियों से निपटने में आसानी होती है और यह विश्वास दिलाता है कि बाहरी झटके के मामले में देश के महत्वपूर्ण आयात का समर्थन करने के लिए अभी भी पर्याप्त विदेशी मुद्रा होगी.
10 अप्रैल को खत्म सप्ताह में दो अरब डॉलर बढ़कर 476.5 अरब डॉलर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार
मई के आखिर सप्ताह में 3.854 अरब डॉलर बढ़ा विदेशी मुद्रा भंडार
बता दें कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 27 मई को समाप्त हुए सप्ताह में 3.854 अरब डॉलर बढ़कर 601.363 अरब डॉलर हो गया. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, यह वृद्धि विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में हुई बढ़ोतरी के कारण हुई है. इससे पिछले सप्ताह, विदेशी मुद्रा भंडार 4.230 अरब डॉलर बढ़कर 597.509 अरब डॉलर हो गया था. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि का कारण विदेशी मुद्रा आस्तियों में वृद्धि होना है, जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण घटक है. आंकड़ों के अनुसार विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) 3.61 अरब डॉलर बढ़कर 536.988 अरब डॉलर हो गई.
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वैश्विक बाज़ार में डॉलर का वर्चस्व
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख के अंतर्गत वैश्विक बाज़ार में डॉलर के वर्चस्व और उसकी भूमिका पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
अमेरिकी डॉलर निस्संदेह वैश्विक वित्तीय प्रणाली का प्रमुख चालक है। केंद्रीय बैंकों के लिये प्रमुख आरक्षित मुद्रा से लेकर वैश्विक व्यापार एवं उधार लेने हेतु मुख्य साधन के सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? रूप में अमेरिकी डॉलर विश्व भर के बैंकों और बाज़ारों के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्ष 2017 में जारी एक शोध पत्र के मुताबिक कुल अमेरिकी डॉलर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका से बाहर मौजूद है। यह आँकड़ा विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिये डॉलर के महत्त्व को स्पष्ट करता है। हालाँकि गत वर्षों में कई देशों की सरकारों ने डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने का प्रयास किया है, उदाहरण के लिये वर्ष 2017 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रुसी बंदरगाहों पर अमेरिकी डॉलर के माध्यम से व्यापार न करने का आदेश दिया था। परंतु जानकारों का मानना है कि डी-डॉलराइज़ेशन या वैश्विक बाज़ार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व में कमी निकट भविष्य में संभव नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसे दुनिया भर में व्यापार या विनियम के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है। अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन आदि विश्व की कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्राएँ हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा को आरक्षित मुद्रा के रूप में भी जाना जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) ने दुनिया भर की 180 प्रचलित मुद्राओं को मान्यता प्रदान की है और अमेरिकी डॉलर भी इन्हीं में से एक है, परंतु खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश का प्रयोग मात्र घरेलू स्तर पर ही किया जाता है।
- विश्व भर के बैंकों की डॉलर पर निर्भरता को वर्ष 2008 के वैश्विक संकट में स्पष्ट रूप से देखा गया था।
वैश्विक स्तर पर डॉलर की भूमिका
- आरक्षित मुद्रा के रूप में
- अंतर्राष्ट्रीय क्लेम को निपटाने और विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से दुनिया भर के अधिकांश केंद्रीय बैंक अपने पास विदेशी मुद्रा का भंडार रखते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है। आँकड़ों के मुताबिक, 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी ज्ञात केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 61 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी डॉलर का है।
- अमेरिका डॉलर के बाद यूरो को सबसे लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना जाता है, विदित हो कि वर्ष 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा यूरो का है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2010 से जापानी येन (Yen) की आरक्षित मुद्रा के रूप में भूमिका में 5.4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि चीनी युआन (Yuan) और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है, यद्यपि यह अभी मात्र 2 प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करता है।
- वर्तमान में गैर-अमेरिकी आयातकों और निर्यातकों के मध्य लेन-देन में अमेरिकी डॉलर खासी भूमिका निभा रहा है।
- ज्ञात है कि विश्व का लगभग 90 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार डॉलर के माध्यम से ही होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) के अनुसार, डॉलर में प्रकट बिल (Invoices) का अनुपात विश्व आयात में डॉलर की हिस्सेदारी का लगभग पाँच गुना अधिक है।
- आँकड़ों के मुताबिक, 2018 में गैर-सदस्यों से यूरोपीय संघ में आयात की गई कुल वस्तुओं में आधे से अधिक के बिल/इनवॉइस अमेरिकी डॉलर में प्रस्तुत किये गए थे।
- वैश्विक बाज़ारों में सक्रिय कंपनियाँ, जैसे- हवाई जहाज़ निर्माता कंपनी एयरबस (Airbus) प्रायः अपने मूल्यों को डॉलर में ही सूचीबद्ध करती हैं।
- आमतौर पर तेल और सोने जैसी वस्तुओं का मूल्य निर्धारण अमेरिकी डॉलर में ही किया जाता है। गौरतलब है कि अधिकांश तेल उत्पादक देश बिक्री के बीजक (Invoice) बनाते समय उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने के लिये अपनी मुद्रा का मूल्य निर्धारण डॉलर के आधार पर करते हैं।
- वर्ष 2018 में डॉलर का वर्चस्व तब देखने को मिला जब अमेरिका ने ईरान पर पुनः प्रतिबंध लगाने और उसके साथ व्यापार करने वाले देशों को दंडित करने का फैसला किया।
- BIS के आँकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका से बाहर रहने वाले गैर-बैंकिंग उधारकर्त्ताओं पर जून 2019 तक 11.9 ट्रिलियन डॉलर का उधार था।
डॉलर के विकास की कहानी
- उल्लेखनीय है कि पहला अमेरिकी डॉलर वर्ष 1914 में फेडरल रिज़र्व बैंक द्वारा छापा गया था। 6 दशकों से कम समय में ही अमेरिकी डॉलर एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उभर कर सामने आ गया, हालाँकि डॉलर के लिये इतने कम समय में ख्याति हासिल करना शायद आसान नहीं था।
- यह वह समय था जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पछाड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रही थी, परंतु ब्रिटेन अभी भी विश्व का वाणिज्य केंद्र बना हुआ था क्योंकि उस समय तक अधिकतर देश ब्रिटिश पाउंड के माध्यम से ही लेन -देन कर रहे थे।
- साथ ही कई विकासशील देश अपनी मुद्रा विनिमय में स्थिरता लाने के लिये उसके मूल्य का निर्धारण सोने (Gold) के आधार पर कर रहे थे
- इस व्यवस्था को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।
‘एक विश्व मुद्रा’ की मांग
- मार्च 2009 में चीन और रूस ने नई वैश्विक मुद्रा का आह्वान किया था, वे एक ऐसी मुद्रा चाहते थे जो कि ‘विश्व के किसी भी देश से जुड़ी न हो और लंबे समय तक स्थिर रहने में सक्षम हो।’
- चीन को चिंता थी कि यदि डॉलर मुद्रास्फीति की सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? शुरुआत होती है तो उसके पास मौजूद अरबों डॉलर का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा। गौरतलब है कि यह स्थिति अमेरिकी घाटे में वृद्धि और अमेरिकी ऋण के भुगतान के लिये अधिक-से-अधिक नोटों की छपाई के कारण संभव थी।
- चीन ने डॉलर को प्रतिस्थापित करने के लिये नई मुद्रा का विकास करने हेतु IMF का आह्वान किया, हालाँकि अभी तक डॉलर को प्रतिस्थापित करना संभव नहीं हो पाया है परंतु चीन इस ओर अभी भी प्रयास कर रहा है और इस संदर्भ में वह अपनी अर्थव्यवस्था में भी काफी सुधार कर रहा है।
निष्कर्ष
अरबों डॉलर के विदेशी ऋण और घाटे की वित्तीय व्यवस्था के बावजूद वैश्विक बाज़ार को अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर विश्वास है। जिसके कारण अमेरिकी डॉलर आज भी विश्व की सबसे मज़बूत मुद्रा बनी हुई है और आशा है कि आने वाले वर्षों में भी यह महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा की भूमिका अदा करेगी, हालाँकि गत कुछ वर्षों में चीन और रूस जैसे देशों ने डॉलर के समक्ष कई चुनौतियाँ पैदा की हैं। आवश्यक है कि चीन और रूस जैसे देशों की बात भी सुनी जानी चाहिये और सभी हितधारकों को एक मंच पर एकत्रित होकर यथासंभव संतुलित मार्ग की खोज करने का प्रयास करना चाहिये।
प्रश्न: वैश्विक वित्तीय प्रणाली में डॉलर की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।
भारत में तेजी से बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार के क्या हैं कारण ?
एक विविध संघीय जनतंत्र होने के बावजूद बीते छः वर्षों में पूरे भारत के लिए सीमलेस, सम्मिलित एवं पारदर्शी व्यवस्थाएँ तैयार करने पर बल दिया गया है। जहाँ पहले भारत में अप्रत्यक्ष कर ढाँचे का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था, वहीं अब जीएसटी के रूप में केवल एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पूरे देश के व्यापार संस्कृति का एक हिस्सा बन चुकी है।
आपको याद होगा, दिनांक 25 सितम्बर 2019 को न्यूयॉर्क में ब्लूम्बर्ग वैश्विक व्यापार फ़ोरम 2019 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेशी निवेशकों को निमंत्रण देते हुए कहा था कि वे भारत में अपने निवेश को बढ़ाएँ क्योंकि विकास ही आज भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। आज भारत की जनता उस सरकार के साथ खड़ी है जो व्यवसाय का माहौल सुधारने के लिए बड़े से बड़े और कड़े से कड़े फ़ैसले लेने में पीछे नहीं रहती है।
आज भारत में एक ऐसी सरकार है जो व्यापार जगत का सम्मान करती है। आज भारत एक अद्वितीय स्थिति में आकर खड़ा हो गया है। देश में तेज़ गति से विकास हो रहा है, ग़रीबी में कमी आ रही है, लोगों की क्रय शक्ति बढ़ रही है जिससे विभिन्न वस्तुओं की माँग में वृद्धि दृष्टिगोचर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशी निवेशकों को दिए गए उक्त वर्णित निमंत्रण का असर बहुत ही प्रभावशाली रहा है। इसके चलते, दिनांक 5 जून, 2020 को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की है।
भारतीय इतिहास में पहली बार देश में विदेशी मुद्रा भंडार ने 500 बिलियन (50,000 करोड़) अमेरिकी डॉलर के आँकड़े को पार करते हुए 501.70 बिलियन (50,170 करोड़) अमेरिकी डॉलर के स्तर को छुआ है।
देश के लिए यह हर्ष का विषय ही होना चाहिए कि जब पूरे विश्व में कोरोना महामारी का प्रकोप छाया हुआ है ऐसी स्थिति में भी विदेशी निवेशकों का भारत पर विश्वास बना हुआ है। मार्च 2020 के बाद सबसे आसान विदेशी मुद्रा व्यापार प्रणाली क्या है? से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 2400 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज हुई है।
सांकेतिक चित्र (साभार : Daijiworld)
भारत सरकार द्वारा विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए उठाए गए क़दम
पहली चीज, भारत में कारपोरेट कर में भारी कमी की गई है। निवेश के प्रोत्साहन के लिए यह एक बहुत क्रांतिकारी क़दम है और इस फ़ैसले के बाद विश्व व्यापार जगत के सभी धुरंधर भारत के इस फ़ैसले को एक एतिहासिक क़दम मान रहे हैं। इसके अलावा भी भारत सरकार द्वारा देश में व्यापार को आसान बनाने के लिए कई फ़ैसले लिए गए हैं, जैसे 50 से ज़्यादा ऐसे क़ानूनों को समाप्त कर दिया गया है जो विकास के कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहे थे।
एक विविध संघीय जनतंत्र होने के बावजूद बीते छः वर्षों में पूरे भारत के लिए सीमलेस, सम्मिलित एवं पारदर्शी व्यवस्थाएँ तैयार करने पर बल दिया गया है। जहाँ पहले भारत में अप्रत्यक्ष कर ढाँचे का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था, वहीं अब जीएसटी के रूप में केवल एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पूरे देश के व्यापार संस्कृति का एक हिस्सा बन चुकी है।
इसी तरह ही दिवालियापन की समस्या से निपटने के लिए इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंक्रप्सी कोड लागू किया गया है, जिससे बैकों को चूककर्ता बकायादारों से निपटने में आसानी हो गई है। कर प्रणाली से जुड़े क़ानूनों और ईक्विटी निवेश पर कर को वैश्विक कर प्रणाली के बराबर लाने के लिए देश में ज़रूरी सुधार निरंतर हो रहे हैं।
कर प्रणाली में सुधार के अलावा देश में दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशी योजना को भी बहुत कम समय में लागू कर लिया गया है। क़रीब 37 करोड़ लोगों को बीते 5-6 सालों में बैंकों से पहली बार जोड़ा गया है। आज भारत के क़रीब क़रीब हर नागरिक के पास यूनिक आईडी है, मोबाइल फ़ोन है, बैंक अकाउंट है, जिसके कारण लक्षित सेवाओं को प्रदान करने में तेज़ी आई है। धनराशि का रिसाव बंद हुआ है और पारदर्शिता कई गुना बड़ी है।
नए भारत में अविनियमन, डीरेग्युलेशन और व्यापार में परेशनियाँ ख़त्म करने की मुहिम चलाई गई है। साथ ही, विमानन, बीमा एवं मीडिया जैसे कई क्षेत्र, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिए गए हैं।
साभार : Times of India
आर्थिक सुधारों को लागू करने के कारण देश वैश्विक कारोबारी रैंकिंग में आगे बढ़ता जा रहा है। ये रैंकिंग अपने आप नहीं सुधरती है। भारत ने बिलकुल ज़मीनी स्तर पर जाकर व्यवस्थाओं में सुधार किया है। नियमों को आसान बनाया है। उदाहरण के तौर पर यह बताया जा सकता है कि देश में पहले बिजली कनेक्शन लेने के लिए उद्योगों को कई महीनों का समय लग जाता था, परंतु अब कुछ दिनों के भीतर बिजली कनेक्शन मिलने लगा है।
इसी तरह कम्पनी के रेजिस्ट्रेशन के लिए पहले कई हफ़्तों का समय लग जाता था। परंतु, अब कुछ ही घंटो में कम्पनी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है। ब्लूम्बर्ग की एक रिपोर्ट में भी भारत में आ रहे बदलाव की तस्वीर पेश की गई है। ब्लूम्बर्ग के नेशन ब्राण्ड 2018 सर्वे में भारत को निवेश के लिहाज़ से पूरे एशिया में पहला स्थान दिया गया है।
10 में से 7 संकेतकों – राजनैतिक स्थिरता, मुद्रा स्थिरता, उच्च गुणवत्ता के उत्पाद, भ्रष्टाचार विरोधी माहौल, उत्पादों की कम लागत, सामरिक स्थिति और आईपीआर के प्रति आदर की भावना – इन सभी में भारत नम्बर एक रहा है। बाक़ी संकेतकों में भी भारत की स्थिति काफ़ी ऊपर रही है।
उक्त वर्णित कारणों के चलते ही, बीते 5 सालों में भारत में 286 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। ये बीते 20 साल में भारत में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का आधा है। अमेरिका ने भी जितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बीते दशकों में भारत में किया है उसका 50 प्रतिशत सिर्फ़ पिछले चार सालों के दौरान हुआ है।
और, ये निवेश तब हुआ है जब पूरी दुनिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्तर लगातार कम हो रहा है। आज विदेशी निवेशकों का भारत पर भरोसा बढ़ा है और वो लंबे समय के लिए निवेश कर रहे हैं, जिसके चलते भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार लगातार बढ़ता जा रहा है।
विदेशी मुद्रा भंडार का देश में उपयोग कैसे हो
इस मुद्दे को कई बार उठाया जाता रहा है कि देश में यदि पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है तो विदेशी मुद्रा में ऋणों की वृद्धि नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि विदेशी मुद्रा में ऋणों पर ब्याज की दर अधिक होती है जबकि विदेशी मुद्रा भंडार के विदेशी सरकारों द्वारा जारी बांड्ज़ में निवेश पर ब्याज की दर तुलनात्मक रूप से बहुत ही कम होती है।
किंतु यहाँ इस तथ्य पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि विदेशी मुद्रा भंडार को उच्च स्तर पर बनाए रखने के कई अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं, यथा, देश में तरलता की स्थिति बनाए रखना, अप्रत्याशित कारणों से निर्मित हुई विपरीत स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था का बचाव करना, विदेशी निवेशकों में विश्वास की भावना बनाए रखना, आदि।
विदेशी मुद्रा भंडार के संचयन एवं प्रबंधन का मुख्य ध्येय ही देश की अर्थव्यवस्था में तरलता एवं सुरक्षा की स्थिति बनाए रखना है। विदेशी मुद्रा भंडार से किए गए समस्त निवेश उच्चतम साख गुणवत्ता के साथ सामान्यतः अल्प अवधि के होते हैं। इस कारण से विदेशी मुद्रा भंडार पर ब्याज की दर एवं ऋणों पर ब्याज की दर में अंतर स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। हाँ, जब विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर को बनाए रखने के लिए यदि ऋण लिया जा रहा हो तो इस मुद्दे पर गम्भीरता से विचार निश्चित रूप से किया जाना चाहिए।
आज, इस विषय पर बहस शुरू किए जाने की आवश्यकता है कि देश में आवश्यकता अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर बनाए रखने के बाद, इस भंडार का उपयोग देश में ही विकास के कार्यों में क्यों नहीं किया जाना चाहिए। इससे कई लाभ होंगे। एक तो, अर्थव्यवस्था में तरलता की स्थिति में सुधार होगा। दूसरे, देश में पूँजी के एक बफ़र के रूप में इस धन को इस्तेमाल किया जा सकेगा, जिससे देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी।
तीसरे, तुलनात्मक रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक की आय में सुधार होगा, क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक को इस निवेश पर कम ब्याज दर के स्थान पर अधिक ब्याज की दर मिलनी शुरू होगी। इस विषय पर गम्भीरता एवं विस्तार से चर्चा करने के बाद एवं फ़ायदे एवं नुक़सान का आकलन करने के बाद, इस बारे में एक विस्तृत नीति का निर्माण किए जाने की आज आवश्यकता है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)
अर्थव्यवस्थाः डटकर मुकाबले का वक्त
आर्थिक तौर पर चुनौतियों से भरे साल का पन्ना पलटते हुए देश अब जो सुधार और बहाली के उपाय करेगा वे बेहद अहम साबित होंगे
एम.जी. अरुण
- नई दिल्ली,
- 02 फरवरी 2021,
- (अपडेटेड 02 फरवरी 2021, 11:54 PM IST)
जब अर्थव्यवस्था की बात आती है, मौजूदा चुनौतियों की थाह लेने के लिए अतीत के अनुभव आईने का काम करते हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था ने बीते दशक में बड़ी उथल-पुथल मचाने वाले कुछ झंझावात झेले हैं. मसलन, जुलाई 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से किया 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण और फिर 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में मोरारजी देसाई सरकार की तरफ से लाया गया विदेशी मुद्रा विनिमय कानून, जिसने विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय उद्यमों में 40 फीसद से ज्यादा मिल्कियत हासिल करने पर पाबंदी लगाई और इस वजह से आइबीएम और कोका-कोला सरीखी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय बाजार से रुखसत होना पड़ा था.
1991 के भुगतान संतुलन के संकट के बाद नरसिंह राव सरकार ने कई क्षेत्रों में ढांचागत अड़चनों को दूर करने के लिए कई सुधारों को अंजाम दिया था. तब वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के मातहत औद्योगिक लाइसेंस देने की प्रणाली यानी लाइसेंस राज समाप्त किया गया, वित्तीय क्षेत्र के सुधार लागू किए गए और व्यापार को उदार बनाया गया था.
इस सबका मकसद घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ाना, विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना और निजी निवेश को प्रोत्साहित करना था. तब लाए गए सुधारों में औद्योगिक नियम-कायदों में ढील, वित्तीय और कर सुधार तथा विदेशी मुद्रा विनिमय और विदेशी व्यापार नीतियों में सुधार शामिल थे. इन सबकी बदौलत देश की सालाना जीडीपी वृद्धि 1990 के दशक में 6.1 फीसद पर पहुंच गई और देश ने 30 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां इकट्ठा कर लीं तथा इस बीच बाहरी कर्ज भी कम किया.
हाल में 2014-19 के बीच नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में देश दो जबरदस्त आर्थिक उथल-पुथल का गवाह बना—नवंबर 2016 में 500 रुपए और 1,000 रुपए के नोटों का बंद किया जाना और जुलाई 2017 में जीएसटी (माल और सेवा कर) लागू करना. मोदी सरकार 2016 में ऋण शोधन अक्षमता और दिवालिया संहिता भी लाई, जिसकी बदौलत कर्जदाताओं के लिए नाकाम कारोबारों से अपने निवेश का कम से कम कुछ हिस्सा वसूल कर पाना मुमकिन हुआ.
2019 से शुरू अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार को कोविड-19 महामारी से जूझना पड़ा, जब दुनिया का एक सबसे कठोर लॉकडाउन लगा और लोगों तथा फर्मों को संकट से पार पाने में मदद करने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के आत्मनिर्भर भारत अभियान का ऐलान किया गया. अर्थव्यवस्था, जो महामारी से पहले ही चरमरा रही थी और उससे पूर्व की कई तिमाहियों में कई क्षेत्रों में वृद्धि 5 फीसद से नीचे आ गई थी, फिलहाल आजादी के बाद अपनी पांचवीं मंदी के दौर में है, जब 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ करीब -7.7 पर आ जाने की आशंका है.
ऐसे में सरकार के लिए क्या करना बेहद जरूरी है? ज्यादातर विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि भारत को बुनियादी ढांचा और स्वास्थ्य सेवा सरीखे क्षेत्रों में खुलकर अच्छा-खासा खर्च करना चाहिए. बुनियादी ढांचे पर खर्च से नौकरियों का सृजन होगा और स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करने से महामारी से लडऩे में मदद मिलेगी. मैन्युफैन्न्चङ्क्षरग क्षेत्र को भी सहारे की जरूरत है. आगे की संभावनाओं पर विचार करते हुए विशेषज्ञों ने सबसे बड़ी एनबीएफसी (गैर-बैंङ्क्षकग वित्तीय कंपनियां) की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा की भी मांग की है, ताकि पूंजी की कमी से कराह रही फर्म की पहचान और सहायता की जा सके.
साथ ही, वे बुनियादी ढांचे की ठप पड़ी परियोजनाओं को दोबारा शुरू करने की कोशिश करने की जरूरत भी बताते हैं. भारत को नई ऊर्जा से ओतप्रोत सुधार कार्यक्रम की भी जररूत है जिसका जोर पूंजी, जमीन और श्रम बाजारों को उदार बनाने पर हो. आरबीआइ के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि सरकार को खासकर सबसे गरीब राज्यों में जमीनों की पैमाइश और मिल्कियत तय करने का काम तेज करना चाहिए.
केंद्र को बेहतरीन प्रथाओं के आधार पर जमीन अधिग्रहण कानून को नया रूप देना चाहिए जिसमें विक्रेता के हितों की रक्षा के साथ अधिग्रहण की प्रक्रिया ज्यादा आसान हो सके. भारत को वैश्विक तौर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए ज्यादा बड़े आकार की फर्मों की जरूरत भी है. विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि भारत की कर और नियामकीय व्यवस्थाओं में ऐसे बदलाव ऐसा नहीं किए जाने चाहिए जो अप्रत्याशित हों. ठ्ठ
भारत को नई ऊर्जा से भरे सुधार कार्यक्रम की जरूरत है जिससे भूमि, पूंजी और श्रम बाजार उदार हो सके
75 वें वर्ष का एजेंडा
भारत को बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य पर खर्च करने की जरूरत है-पहले खर्च से रोजगार पैदा हो सकेंगे और दूसरे से महामारी से निपटने में मदद मिलेगीभूमि, श्रम और पूंजी बाजार को उदार बनाने के साथ भविष्य के संकट से बचने के लिए एनबीएफसी की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता समीक्षा की मांग विशेषज्ञ उठा रहे हैं
अल्पकाल में उत्पादन को मदद की ज्यादा जरूरत है, साथ ही जानकार कह रहे हैं कि अटकी हुई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के प्रयास होने चाहिए
दीर्घकाल में इंफ्रास्ट्रन्न्चर परियोजनाओं की राह में भूमि अधिग्रहण बाधा बनता है, कुछ जानकार कहते हैं कि बेचने वाले के हित संरक्षित करते हुए बेहतर कानून बनाकर इसे आसान बनाया जा सकता है
करों और नियमों को सहज व अनुमान के दायरे में रखने की मांग उद्योग जगत करता है