क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है

महामारी के बाद भविष्य की वास्तविक तस्वीर
कोविड-19 ने वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था पर जो असर डाला वह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), बेरोजगारी तथा अन्य आर्थिक आंकड़ों में आसानी से देखा जा सकता है। परंतु महामारी तथा अन्य प्रकार की उथलपुथल मसलन रूस-यूक्रेन युद्ध आदि का भारतीय अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा?
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वेबसाइट पर मुद्रा एवं वित्त से संबंधित रिपोर्ट हाल ही में प्रकाशित की गई। इस रिपोर्ट में उन ढांचागत समस्याओं को भी जानने की कोशिश की गई है जिन्हें तत्काल हल करने की आवश्यकता है।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी भूमिका में आइंस्टाइन को उद्धृत करते हुए कहा कि उन्हें आशा है, 'रिपोर्ट सही प्रश्न पूछेगी और पाठकों को कल्पना करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, मसलन महामारी के बाद भारत के भविष्य के बारे में।'
दास निराश नहीं होंगे क्योंकि रिपोर्ट को पढऩे पर पता चलता है कि उसमें यकीनन सही मुद्दे उठाये गए हैं। रिपोर्ट का वह हिस्सा जो एक आर्थिक समाचार पत्र की सुर्खियां बना, और जिसने सोशल मीडिया पर भी जबरदस्त रुचि जगाई वह है यह अनुमान कि अगर भारत अभी से सालाना 7.5 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करना क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है शुरू कर दे तो उसे कोविड-19 के कारण हुए समस्त नुकसान से निजात पाने में 2034-35 तक का वक्त लगेगा। परंतु यह अनुमान रिपोर्ट का सबसे अहम हिस्सा नहीं है।
ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात है मौद्रिक नीति की सीमाओं तथा इस विश्लेषण पर ध्यान देना कि महामारी के बाद की राजकोषीय नीति को क्या करना चाहिए तथा उसे किन गलतियों से बचना चाहिए। एक संकेत यह है कि केंद्रीय बैंक इस बात से अवगत है कि उसने नकदी को लंबे समय तक समायोजित रखा और अब उसे धीरे-धीरे कड़ाई करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को भविष्य में जो जरूरी गति चाहिए वह राजकोषीय नीति से हासिल करनी होगी। परंतु रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बहुत अधिक राजकोषीय प्रोत्साहन, यदि सही ढंग से केंद्रित नहीं हुआ तो वह नुकसानदेह भी साबित हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आमतौर पर अगर सरकार का ऋण-जीडीपी अनुपात 66 फीसदी से ऊपर निकल जाए तो वह जीडीपी वृद्धि को प्रभावित करना शुरू कर देता है। लेकिन उसमें यह भी कहा गया है कि अगले पांच वर्षों तक ऋण-जीडीपी अनुपात 75 फीसदी से अधिक बना रह सकता है।
रिपोर्ट में जहां महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को पहुंचे नुकसान का जिक्र किया गया तो भी विश्लेषण को किसी तरह की शाब्दिक चाशनी में लपेटने का प्रयास नहीं किया गया। रिपोर्ट इस क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है बारे में ठोस आंकड़े पेश करती है कि महामारी के कारण कैसे आम परिवारों के पूंजी निर्माण में तेजी से गिरावट आई है। दो वर्ष बीतने के बाद भी निजी खपत महामारी के पहले के स्तर की छाया मात्र है और रोजगार तथा वेतन भत्तों की स्थिति सुधरने में भी वक्त लगेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि कारोबार तो सुधरे हैं लेकिन आम परिवारों की हालत नहीं सुधरी है।
कुछ ऐसे मसले भी हैं जिनका जिक्र इस रिपोर्ट में नहीं किया गया है या जिन पर गहरायी से चर्चा नहीं हुई है। उदाहरण के लिए एक जगह रिपोर्ट कहती है कि मोटे तौर पर कंपनियां महामारी के बाद मजबूत वापसी करने में कामयाब रहीं क्योंकि सरकार ने महामारी के दौरान राजकोषीय और वित्तीय प्रोत्साहन दिया। लेकिन यह भी कहा गया है कि मजबूत कंपनियां, कमजोर कंपनियों की तुलना में अधिक फायदे में रहीं, हालांकि शायद इस बात को भी नहीं सराहा जाएगा कि हमारा कारोबारी जगत बड़ी और छोटी कंपनियों में बंटा है जहां बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों को लाभ हुआ और छोटे, असंगठित क्षेत्र को झटके सहन करने पड़े। स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी मोतीलाल ओसवाल की कॉर्पोरेट फाइलिंग पर नजर डालें तो पता चलता है कि बड़ी कंपनियों द्वारा भारी भरकम मुनाफे की घोषणा के बीच यह तथ्य दब गया कि अगर सूचीबद्ध एवं गैर सूचीबद्ध सभी तरह की कंपनियों को शामिल किया जाए तो कारोबारी क्षेत्र गहरे संकट में नजर आता है।
एक बार फिर रिपोर्ट में भारत में श्रम नियमों की कठोरता की बात की गई है और यह भी कि कैसे इनमें सुधार करके रोजगार और उत्पादकता को बेहतर बनाया जा सकता है। आदर्श स्थिति में इसमें उस खतरे की गहराई का भी विश्लेषण किया जाना चाहिए था कि महामारी के चलते तकनीक और स्वचालन का चलन बढऩे से भारत में रोजगार सृजन को किस तरह के खतरे उत्पन्न हुए हैं। रिपोर्ट में शिक्षा, कौशल और उत्पादकता का जिक्र है लेकिन शायद इसमें और गहराई की जरूरत थी क्योंकि यह वर्तमान और भविष्य के रोजगार और उत्पादकता की दृष्टि से अहम है।
इसी तरह कृषि के क्षेत्र में भी इसने जलवायु परिवर्तन के कारण फसल उत्पादन को होने वाले नुकसान पर ध्यान नहीं दिया और न ही इस बारे में बात की क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है कि आखिर देश को इस गंभीर समस्या से कितनी जल्दी जूझना होगा।
परंतु एक बेहतरीन रिपोर्ट से जुड़ी ये कुछ छिटपुट बातें हैं। वरना तो रिपोर्ट अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद सभी खतरों को न केवल चिह्नित करती है बल्कि उन्हें रेखांकित भी करती है। रिपोर्ट में जो बातें उल्लिखित हैं और जो सुझाव दिए गए हैं वे आंकड़ों, आर्थिक मॉडल तथा शोधपत्रों पर आधारित हैं।
वास्तविक प्रश्न यह है कि क्या सरकार इन बिंदुओं को हल करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा सकती है या फिर क्या इसमें यह क्षमता है कि वह उन तमाम दिक्कतों को दूर कर सके क्योंकि उनमें से कई का कारण महामारी नहीं है और वे दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था में मौजूद हैं। रिपोर्ट का असली मूल्य इस बात में निहित है कि उसने सरकार और काफी हद तक केंद्रीय बैंक के सामने मौजूदा मसलों का ईमानदारी से आकलन किया। समस्या को पहचानना हमेशा उसे हल करने की दिशा में पहला कदम होता है।
(लेखक बिज़नेस टुडे और बिज़नेस वल्र्ड के पूर्व संपादक तथा संपादकीय सलाहकार संस्था प्रोजैकव्यू के संस्थापक हैं)
क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है
बोलिंगर बैंड तकनीकी नजरिये से सौदे करने का एक औजार है, जिसे जॉन बोलिंगर ने क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है 1980 की शुरुआत में बनाया था।
बोलिंगर बैंड एक संकेतक है, जिससे निवेशक एक खास समय के दौरान उतार-चढ़ाव और कीमतों के स्तर की तुलना कर सकते हैं। यह मूविंग एवरेज यानी चर औसत के इस्तेमाल से बना उन्नत औजार है।
मूविंग एवरेज की अपनी सीमाएँ हैं। बोलिंगर बैंड इनके साथ-साथ शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव के पहलू को भी शामिल करके इन सीमाओं का समाधान करता है। किसी मूविंग एवरेज के ऊपर या नीचे एक निश्चित प्रतिशत तय करने के बजाय बोलिंगर बैंड की गणना बंद भावों के आधार पर किसी मूविंग एवरेज के ऊपर और नीचे मानक विचलन (स्टैंडर्ड डेविएशन) के आधार पर की जाती है। इन्हें इस सिद्धांत के आधार पर बनाया गया है कि जब उतार-चढ़ाव कम होता है तो बोलिंगर बैंड संकरे होते हैं और जब उतार-चढ़ाव ज्यादा होने पर वे फैल जाते हैं। इसके विभिन्न स्तरों की गणना का सूत्र यह है -
2 मध्यम बैंड = 20 दिनों का मूविंग एवरेज
2 ऊपरी बैंड = मध्यम बैंड + 2 मानक विचलन
2 निचला क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है बैंड = मध्यम बैंड - 2 मानक विचलन
माना जाता है कि 20 दिनों का मूविंग एवरेज छोटी अवधि में महत्वपूर्ण समर्थन या बाधा स्तर का काम करता क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है है। इसलिए हमने 20 दिनों के मूविंग एवरेज को आधार के तौर पर इस्तेमाल किया है। बहुत-से विश्लेषक अपनी पसंद के आधार पर 10, 14 या 26 दिन वगैरह के मूविंग एवरेज को पैमाना बनाते हैं।
मानक विचलन बाजार के उतार-चढ़ाव का अच्छा संकेत देते हैं। मानक विचलन के इस्तेमाल से सुनिश्चित होता है कि इन बैंड यानी धारियों में कीमतों में बदलाव के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया होगी। साथ ही इनसे उतार-चढ़ाव ज्यादा और कम होने की अवधि का पता चल सकेगा। कीमतें तेजी से ऊपर या नीचे होने पर उतार-चढ़ाव बढऩे से ये बैंड ज्यादा चौड़े होंगे।
जब बैंड संकरे हो जाते हैं तो कीमतों में आगे तेज बदलाव आने की प्रवृत्ति बनती है। इसे दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि जब कीमतें एक छोटे दायरे में रहती हैं और उतार-चढ़ाव कम रहता है तो माँग और आपूर्ति में एक अच्छा संतुलन रहता है।
बैंड का संकुचन हमेशा हाल के बीते समय की चाल के संदर्भ में होता है। इसीलिए बोलिंगर बैंड इस संकुचन प्रक्रिया को साफ तौर पर देखने में मदद करते हैं। इनसे हमें यह भी संकेत मिलता है कि नयी चाल (ब्रेकआउट) कब आ सकती है, क्योंकि नयी चाल किसी भी दिशा में बढऩे पर वे फैलने लगते हैं।
अगर कीमत ऊपरी बैंड या धारी के ऊपर चलने लगती है तो यह तब तक मजबूती का संकेत होता है, जब तक कि वह मध्यम बैंड के नीचे बंद न हो। इसका मतलब यह है कि अगर कीमत बीच की मूविंग एवरेज रेखा क्या तकनीकी विश्लेषण वास्तविक है के ऊपर बनी हुई है और कई बार ऊपरी बैंड को भी पार कर चुकी हैं तो इसे लगातार तेजी के रुझान का संकेत माना जा सकता है। कारोबारी मध्यम बैंड के नीचे घाटा काटने का स्तर तय करके सौदे बनाये रख सकते हैं। निचले बैंड के मामले में इसका उलटा होता है। अगर शेयर निचले बैंड से टकरा रहा है और मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने में नाकाम रहता है तो यह उस शेयर में कमजोरी जारी रहने का संकेत हैं। ऐसे में वह शेयर मध्यम बैंड के ऊपर बंद होने तक बिकवाली सौदों में बना रहा जा सकता है।
जब कीमतें बैंड के बाहर चली जाती हैं तो माना जाता है कि वही रुझान जारी है। अगर कीमत ऊपरी बैंड से नीचे आने लगती है और निचले बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी नीचे बंद होती है तो रुझान पलट सकता है। दूसरी ओर अगर भाव निचले बैंड से चढऩा शुरू करे और ऊपरी बैंड के करीब या मध्यम बैंड के काफी ऊपर बंद हो तो इसे गिरावट का रुझान पलटना कह सकते हैं।
अलग-अलग विश्लेषक अपने विश्लेषण को सही साबित करने के लिए अलग-अलग मानदंडों और तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में निवेशकों को मेरी सलाह है कि वे अपनी रणनीति के मुताबिक बाजार में सौदे करने से पहले उनका कागज पर परीक्षण कर लें। मतलब यह कि कुछ समय तक उसी रणनीति के आधार वास्तविक सौदे करने के बदले काल्पनिक सौदे करके कागज पर लिखते रहें और अंत में देखें कि क्या परिणाम आ रहा है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)
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2 मध्यम बैंड = 20 दिनों का मूविंग एवरेज
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माना जाता है कि 20 दिनों का मूविंग एवरेज छोटी अवधि में महत्वपूर्ण समर्थन या बाधा स्तर का काम करता है। इसलिए हमने 20 दिनों के मूविंग एवरेज को आधार के तौर पर इस्तेमाल किया है। बहुत-से विश्लेषक अपनी पसंद के आधार पर 10, 14 या 26 दिन वगैरह के मूविंग एवरेज को पैमाना बनाते हैं।
मानक विचलन बाजार के उतार-चढ़ाव का अच्छा संकेत देते हैं। मानक विचलन के इस्तेमाल से सुनिश्चित होता है कि इन बैंड यानी धारियों में कीमतों में बदलाव के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया होगी। साथ ही इनसे उतार-चढ़ाव ज्यादा और कम होने की अवधि का पता चल सकेगा। कीमतें तेजी से ऊपर या नीचे होने पर उतार-चढ़ाव बढऩे से ये बैंड ज्यादा चौड़े होंगे।
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बैंड का संकुचन हमेशा हाल के बीते समय की चाल के संदर्भ में होता है। इसीलिए बोलिंगर बैंड इस संकुचन प्रक्रिया को साफ तौर पर देखने में मदद करते हैं। इनसे हमें यह भी संकेत मिलता है कि नयी चाल (ब्रेकआउट) कब आ सकती है, क्योंकि नयी चाल किसी भी दिशा में बढऩे पर वे फैलने लगते हैं।
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(निवेश मंथन, अगस्त 2013)
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