रुझान प्रकार

रुझान किसे कहते है | रुझान को अंग्रेजी में क्या कहा जाता है रुझान in english meaning
english me definition ya word kya hai रुझान किसे कहते है | रुझान को अंग्रेजी में क्या कहा जाता है रुझान in english meaning ?
अर्थात रुझान को अंग्रेजी में aptitude कहा जाता है और यह शब्द एक प्रकार की Noun होती है |
रुझान meaning in english = aptitude
It means the meaning of word रुझान in english language is called aptitude , you can use the word aptitude in place of रुझान in english grammer writing practice or in any paragraph writing .
अक्सर आपने सुने होगा कि रुझान , क्या आप जानते है कि रुझान का मतलब या अर्थ क्या होता है हिंदी भाषा में या इंग्लिश भाषा में इसे क्या कहते है |
aptitude meaning in hindi language what word we can use in the place of aptitude in hindi grammar for make language appropriate sentence without any error .
भाजपा विधायक सुनील वर्मा के प्रति जनता का बड़ा रुझान
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अजय सिंह ब्यूरो चीफ दैनिक खबर दृष्टिकोण समाचार पत्र सीतापुर
सीतापुर विधानसभा क्षेत्र लहरपुर के भाजपा विधायक सुनील वर्मा जोकि अपने 5 साल के कार्यकाल में संपूर्ण विधानसभा क्षेत्र का चहुमुखी विकास करके जनता का दिल जीत लिया है दूसरी तरफ विकास की लहर इस प्रकार बहा दी है कि हर गांव में बिजली पानी सड़क शौचालय रुझान प्रकार की व्यवस्था हो चुकी है गांव वासियों को अब खुले में सोच नहीं जाना पड़ रहा है एवं बिजली व्यवस्था भी काफी दुरुस्त हो चुकी है साथ ही में विधानसभा क्षेत्र के जो भी पीड़ित उनके पास जाते हैं प्राथमिकता के आधार पर उनके द्वारा लोगों की समस्याएं सुनकर तत्काल लोगों की समस्याओं का निराकरण करवाया जाता है यहां तक की फोन पर भी यदि कोई भी थी अपनी व्यथा बताता है तो संज्ञान लेकर उसके कार्य कराए जाते हैं इस प्रकार जनता भाजपा विधायक सुनील वर्मा के कारणों से पूरी तरह संतुष्ट दिख रही है हर जाति वर्ग के लोग सुरक्षित हैं सभी को न्याय मिल रहा है सभी को सरकारी योजनाओं का लाभ न्याय उचित तरीके से दिलाया जा रहा है विधानसभा क्षेत्र लहरपुर में किए गए सर्वे रिपोर्ट के अनुसार ऐसा प्रतीत हुआ है कि भाजपा विधायक सुनील वर्मा हिंदुत्ववादी नेता है उनके साथ विधानसभा क्षेत्र लहरपुर के करीब 90% हिंदू वर्ग के लोग साथ में हैं यदि भाजपा विधायक सुनील वर्मा के द्वारा इसी प्रकार के कार्य कराए जाते रहे तो आगामी 2022 के होने वाले विधानसभा चुनाव में दोबारा विधानसभा मैं पहुंचाने का कार्य उन्हें जनता अवश्य करेगी ऐसा प्रतीत हो रहा है
भारत में शिक्षक शिक्षा नीति को समय के हिसाब से निरूपित किया गया है और यह शिक्षा समितियों/आयोगों की विभिन्न रिपोर्टों में निहित सिफारिशों पर आधारित है, जिनमें से महत्वपूर्ण हैं : कोठारी आयोग (1966), चट्टोपाध्याय समिति (1985), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन पी ई 1986/92), आचार्य राममूर्ति समिति (1990), यशपाल समिति (1993) एवं राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढॉंचा (एन सी एफ, 2005)। नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आर टी ई) अधिनियम, 2009, जो 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ, का देश में शिक्षक शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ है।
विधिक और सांस्थानिक ढांचा
देश की संघीय ढांचे में हालांकि शिक्षक शिक्षा पर विस्तृत नीतिगत और विधिक ढांचा केन्द्र सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है, फिर भी विभिन्न कार्यक्रमों और स्कीमों का कार्यान्वयन प्रमुखत: राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। स्कूली बच्चों की शिक्षा उपलब्धियों के सुधार के विस्तृत उद्देश्य की दोहरी कार्यनीति है : (क) स्कूल प्रणाली के लिए अध्यापकों को तैयार करना (सेवा पूर्व प्रशिक्षण); और (ख) मौजूदा स्कूल अध्यापकों की क्षमता में सुधार करना (सेवाकालीन प्रशिक्षण)।
सेवा पूर्व प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई), जो केन्द्र सरकार का सांविधिक निकाय है, देश में शिक्षक शिक्षा के नियोजित और समन्वित विकास का जिम्मेदार है। एन सी टी ई विभिन्न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों के मानक एवं मानदंड, शिक्षक शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताएं, विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए छात्र-अध्यापकों के प्रवेश के लिए पाठ्यक्रम एवं घटक तथा अवधि एवं न्यूनतम योग्यता निर्धारित करती है। यह ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की इच्छुक संस्थाओं (सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्व-वित्तपोषित) को मान्यता भी प्रदान करता है और उनके मानदंड और गुणवत्ता विनियमित करने और उन पर निगरानी के निमित्त व्यवस्था है।
सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए देश में सरकारी स्वामित्व वाली शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं (टी टी आई) का बड़ा नेटवर्क है, जो स्कूल अध्यापकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करता है। इन टी टी आई का फैलाव रैखिक एवं क्षैतिज दोनों है। राष्ट्रीय स्तर पर छह क्षेत्रीय शिक्षा संस्थाओं (आर ई ए) के साथ राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद विभिन्न शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए मॉड्यूलों का समूह तैयार करता है और अध्यापकों तथा शिक्षक शिक्षकों के प्रशिक्षण के विशिष्ट कार्यक्रम भी शुरू करता है। राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (एनयूईपीए) द्वारा संस्थानिक सहायता भी दी जाती है। एन सी ई आर टी और एन यू ई पी ए दोनों राष्ट्रीय स्तर के स्वायत्तशासी निकाय हैं। राज्य स्तर पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषदें (एस सी ई आर टी), शिक्षक प्रशिक्षण के मॉड्यूल तैयार करती हैं और शिक्षक शिक्षकों और स्कूल शिक्षकों के लिए विशिष्ट पाठ्यक्रमों का संचालन करती हैं। शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय (सी टी ई) और उन्नत शिक्षा विद्या संस्थान (आई ए एस ई), माध्यमिक और वरिष्ठ रुझान प्रकार माध्यमिक स्कूल अध्यापकों और शिक्षक शिक्षकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। जिला स्तर पर सेवाकालीन प्रशिक्षण जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (डी आई ई टी) द्वारा प्रदान किया जाता है। स्कूल अध्यापकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रखंड संसाधन केन्द्र (बी आर सी) और समूह संसाधन केन्द्र (सी आर सी) रैखिक सोपान में सबसे निचले सोपान के संस्थान हैं। इनके अलावा सिविल सोसायटी, गैर सहायता प्राप्त स्कूलों और अन्य स्थापनाओं की सक्रिय भूमिका के साथ भी सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान किए जाते हैं।
कार्यक्रमों और कार्यकलापों का वित्तपोषण
सेवा-पूर्व प्रशिक्षण के लिए सरकारी और सरकार सहाय्यित शिक्षक शिक्षा संस्थाओं को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा शिक्षक शिक्षा की केन्द्र प्रायोजित स्कीम के अंतर्गत केन्द्र सरकार भी डी आई ई टी, सी टी ई और आई ए सी ई सहित 650 से अधिक संस्थाओं को सहायता करती है।
सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता मुख्यत: सर्व शिक्षा अभियान (एस एस ए) के अंतर्गत दी जाती है, जो आर टी ई अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए मुख्य साधन है। एस एस ए के अंतर्गत स्कूल अध्यापकों को 20 दिन का सेवाकालीन प्रशिक्षण, अप्रशिक्षित अध्यापकों को 60 दिन का पुनश्चर्या पाठ्यक्रम और नव नियुक्त प्रशिक्षित व्यक्तियों को 30 दिन का अभिमुखन प्रदान किया जाता है। शिक्षक शिक्षा की केन्द्र प्रायोजित स्कीम के अंतर्गत जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों (डी आई ई टी), शिक्षक शिक्षा महाविद्यालयों (सी टी ई) और उन्नत शिक्षा अध्ययन संस्थानों (आई ए एस ई) को भी सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए केन्द्रीय सहायता प्रदान की जाती है। राज्य सरकारें भी सेवाकालीन कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता देती है। बहु-पक्षीय संगठनों सहित विभिन्न एन जी ओ सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यकलापों सहित विभिन्न हस्तक्षेपों की सहायता करता है।
नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में शिक्षक शिक्षा का निहितार्थ
नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 का वर्तमान शिक्षक शिक्षा प्रणाली और शिक्षक शिक्षा पर केन्द्र प्रायोजित स्कीम का निहितार्थ है। अधिनियम में अन्य बातों के साथ-साथ ये प्रावधान हैं कि :
- केन्द्र सरकार अध्यापकों के प्रशिक्षण के मानकों का विकास और उनका प्रवर्तन करेगा।
- केन्द्र सरकार द्वारा प्राधिकृत अकादमिक प्राधिकरण द्वारा यथा निर्धारित न्यूनतम योग्यता रखने वाले व्यक्ति शिक्षक के रूप में नियोजित किए जाने के पात्र होंगे।
- ऐसी निर्धारित योग्यताएं नहीं रखने वाले मौजूदा अध्यापकों को 5 वर्ष की अवधि में उक्त योग्यता अर्जित करना अपेक्षित होगा।
- सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि अनुसूची में विहित छात्र-शिक्षक अनुपात प्रत्येक स्कूल में बनाए रखा जाए।
- सरकार द्वारा स्थापित, स्वामित्व, नियंत्रित और पर्याप्त रूप से वित्तपोषित स्कूल में शिक्षक की रिक्ति संस्वीकृत क्षमता के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
शिक्षक शिक्षा का राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा
राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई) ने शिक्षक शिक्षा पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा तैयार किया है, जिसे मार्च 2009 में परिचालित किया गया था। यह ढांचा एन सी एफ, 2005 की पृष्ठभूमि में तैयार किया गया है और नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्धारित सिद्धांतों ने शिक्षक शिक्षा पर परिवर्तित ढांचा अनिवार्य कर दिया है, जो एन सी एफ, 2005 में संस्तुत स्कूल पाठ्यचर्या के परिवर्तित दर्शन के अनुकूल हो। शिक्षक शिक्षा का दर्शन स्पष्ट करते हुए इस ढांचे में नए दृष्टिकोण के कुछ महत्वपूर्ण आयाम हैं :
- परावर्ती प्रचलन, शिक्षक शिक्षा का केन्द्रीय लक्ष्य;;
- छात्र-अध्यापकों को स्व-शिक्षा परावर्तन नए विचारों के आत्मसातकरण और अभिव्यक्ति का अवसर होगा
- स्व-निर्देशित शिक्षा की क्षमता और सोचने की योग्यता का विकास और समूहों में कार्य महत्वपूर्ण।
- बच्चों के पर्यवेक्षण एवं शामिल करने, बच्चों से संवाद करने और उनसे जुड़ने का अवसर। इस ढांचे ने फोकस, विशिष्ट उद्देश्यों, सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक शिक्षा के अनुकूल विस्तृत अध्ययन क्षेत्र और पाठ्यचर्या अंतरण और विभिन्न प्रारंभिक शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए मूल्यांकन कार्यनीति उजागर की हैं। मसौदा आधारभूत मुद्दों को भी रेखांकित करता है, जो इन पाठ्यक्रमों के सभी कार्यक्रमों का निरूपण निदेशित करेगा। इस ढांचे ने सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दृष्टिकोण और रीति विधान पर अनेक सिफारिशें भी की हैं और इसकी कार्यान्वयन कार्यनीति भी रेखांकित की गई है। एन सी एफ टी ई के स्वाभाविक परिणाम के रूप में एन सी टी ई ने विभिन्न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों का 'आदर्श' पाठ्यक्रम भी तैयार किया है।
विनियामक ढांचे में सुधार
राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद का गठन देश में शिक्षक शिक्षा के नियोजन एवं समन्वित विकास की प्राप्ति, शिक्षक शिक्षा प्रणाली के मानकों एवं मानदंडों के विनियमन और उपयुक्त अनुरक्षण के लिए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 के अंतर्गत किया गया था। पिछले दिनों में एन सी टी ई ने अपने कार्यकरण में क्रमिक सुधार और शिक्षक शिक्षा प्रणाली में सुधार के विभिन्न उपाय किए हैं, जो इस प्रकार हैं :
क्या आप जानते हैं हिंदुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत में क्या अंतर हैं?
सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं।हाल में, पॉप, जैज आदि जैसे संगीत के नये रूपों के साथ शास्त्रीय विराशत का फ्यूज़न करने की ओर रुझान बढ़ा रहा है और लोगो का ध्यान भी आकर्षित कर रहा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो प्रकार से बाटा गया है- हिंदुस्तानी शैली और कर्नाटक शैली। इस लेख में हमने, हिंदुस्तान संगीत और कर्नाटक संगीत के बारे में बताया है, जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। भारतीय उप-महाद्वीप में प्रचलित संगीत के कई प्रकार हैं। ये विभिन्य श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं, कुछ का झुकाव शास्त्रीय संगीत की ओर है तथा कुछ का प्रयोग वैश्विक संगीत के साथ भी किया जाता है। हाल में, पॉप, जैज आदि जैसे संगीत के नये रूपों के साथ शास्त्रीय विराशत का फ्यूज़न करने की ओर रुझान बढ़ा रहा है और लोगो का ध्यान भी आकर्षित कर रहा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो प्रकार से बाटा गया है- हिंदुस्तानी शैली और कर्नाटक शैली।
हिंदुस्तानी संगीत शैली (हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत)
यह भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो प्रमुख शैली में से एक है। इस शैली में संगीत संरचना और उसमें तत्वकालिकता की संभावनाओं पर अधीक केन्द्रित होती है। इस शैली में “शुद्ध स्वर सप्तक या प्राकृतिक स्वरों के सप्तक” के पैमाने को अपनाया गया है। 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। "मध्यकालीन मुसलमान गायकों और नायकों ने भारतीय संस्कारों को बनाए रखा। " ध्रुपद, धमर, होरी, ख्याल, टप्पा, चतुरंग, रससागर, तराना, सरगम और ठुमरी” जैसी हिंदुस्तानी संगीत शैली में गायन की दस मुख्य शैलियाँ हैं। ध्रुपद को हिंदुस्तान शास्त्रीय संगीत का सबसे पुराना गायन शैली माना जाता है, जिसके निर्माता स्वामी हरिदास को माना जाता है।
हिंदुस्तानी संगीत शैली की विशेषताएं
1. गीत के नैतिक निर्माण (नदी और सांवादी स्वर) पर जोर दिया जाता है।
2. गायक तेजी से ताली के साथ गायन करता है, जिसे 'जोदा' कहा जाता है।
3. पूर्ण स्वरों को पूरा माना जाता है जब विकृत स्वर के साथ गायन होता है।
4. शुद्ध स्वरों की ठाट को 'तिलवाल' कहा जाता है।
5. स्वरों में रेंज और लचीलापन होता है।
6. समय सीमा का पालन किया जाता है। सुबह और शाम के लिए अलग-अलग राग होता हैं।
7. ताल सामान्य होता हैं।
8. राग लिंग भिन्नता पर आधारित होता हैं।
9. इसके प्रमुख 6 राग हैं।
कर्नाटक संगीत शैली
यह शैली उस संगीत का सृजन करती है जिसे परम्परिक सप्तक में बनाया जाता है। यह भारत के शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली का नाम है, जो उत्तरी भारत की शैली हिन्दुस्तानी संगीत से काफी अलग है। इस शैली में ज्यादातर भक्ति संगीत के रूप में होता है और ज्यादातर रचनाएँ हिन्दू देवी देवताओं को संबोधित होता है। इसके अलावा कुछ हिस्सा प्रेम और अन्य सामाजिक मुद्दों को भी समर्पित होता है।
इस शैली के संगीत में कई तरह के घटक हैं- जैसे मध्यम और तीव्र गति से ढोलकिया के साथ प्रदर्शन किय जाने वाला तत्वकालिक अनुभाग स्वर-कल्पना। इस शैली में सामान्यतः मृद्गम के साथ गया जाता है। मृद्गम के साथ मुक्त लय में मधुर तत्वकालिक का खण्ड ‘थानम’ कहलाता है। लेकिन वे खंड जिनमें मृद्गम की आवश्यकता नहीं होती है उन्हें ‘रागम’ बोला जाता है।
त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की 'त्रिमूर्ति' कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। इस शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति भी शामिल हैं। वर्णम, जावाली और तिल्लाना इस संगीत शैली के गायन शैली के प्रमुख रूप हैं।
कर्नाटक संगीत शैली की विशेषताएं
1. इस शैली में ध्वनि की तीव्रता नियंत्रित की जाती है।
2. हेलीकल (कुंडली) स्वरों का उपयोग किया जाता है।
3. कंठ संगीत पर ज्यादा बल दिया जाता है।
4. इस शैली में 72 प्रकार के राग होता है।
5. तत्वकालिकता के लिए कोई स्वतंत्रता नहीं होती है और गायन शैली की केवल एक विशेष निर्धारित शैली होती है।
6. स्वरों की शुद्धता, श्रुतियों से ज्यादा उच्च रुझान प्रकार शुद्धता पर आधारित होती है।
7. शुद्ध स्वरों की ठाट को 'मुखरी' कहा जाता है।
8. समय अवधि कर्नाटक संगीत में अच्छी तरह से परिभाषित हैं। मध्य 'विलाम्बा' से दो बार और 'ध्रुता' मध्य में से दो बार है।
आर्चरी की तरफ बढ़ रहा युवाओं का रुझान
चंडीगढ़(लल्लन) : देश व शहर में जिस प्रकार से क्रिकेट, फुटबॉल व टैनिस ने अपने पैर पसारे हैं, उसी प्रकार शहर के युवाओं की पसंद अब आर्चरी (तीरंदाजी) खेल भी बनता जा रहा है। इसके कारण एस.जी.एफ.आई. व स्कूल, नैशनल तथा इंटर स्कूल तथा इंटर कालेज मुकाबलों में आर्चरी के बढ़ते ग्राफ के चलते कई खिलाडिय़ों ने इस खेल में ही अपना करियर बनाने की ठान ली है। ऐसे में चंडीगढ़ की सुखना लेक पर चल रहे आर्चरी सैंटर से कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी उभरकर सामने आए हैं।
वह आर्चरी के दम पर ही रेलवे, सी.आर.पी.एफ. तथा अन्य सरकारी महकमों में नौकरी के साथ-साथ देश के लिए पदक भी हासिल कर रहे हैं। इस सैंटर से अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी उभरने के कारण शहर के युवा खिलाडिय़ों में भी कुछ करने की तमन्ना जागी है, जिसके चलते इन दिनों सुखना लेक पर सुबह व शाम के समय 50-60 युवा खिलाड़ी रोजाना अभ्यास कर रहे हैं।
इस खेल को अपनाने में युवाओं के आगे आने के कई कारण हैं। इस खेल में कंपीटीशन भी कम है। ऐसे में खिलाड़ी अपने प्रदर्शन के आधार पर नैशनल व अन्य प्रतियोगिताओं में खिताब जीतकर अपनी दावेदारी अगले राऊंड के लिए पेश करते हैं। इससे युवाओं तथा उनके अभिभावकों में आर्चरी को लेकर काफी क्रेज है।
आर्चरी का इतिहास :
वर्ष 1900 में दूसरा ओलिम्पिक खेल पैरिस में हुआ था। यहां पहली बार आर्चरी (तीरंदाजी) का खेल दिखा था। सात विषयों में अलग-अलग दूरियों पर यह प्रतियोगिता हुई थी। अगले ओलिम्पिक (सैंट लुइस-1904) में भी तीरंदाजी की पांच प्रतियोगिताओं रुझान प्रकार का आयोजन हुआ था लेकिन संयुक्त राज्य अमरीका के अलावा किसी भी तीरंदाज ने उसमें हिस्सा नहीं लिया था। 1908 ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक में तीरंदाजी की तीन स्पर्धा आयोजित हुई थीं।
1912 ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक में इसे निकाल दिया गया था लेकिन यह खेल फिर से 1920 के ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक में शामिल किया गया। वर्ष 1920 और 1972 के मध्य में तीरंदाजी को ओलिम्पिक खेलों में शामिल नहीं किया गया था। तीरंदाजी प्रतियोगिता को विशेष रूप से 1972 में ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक में म्यूनिख में शामिल किया गया। इस दौरान पुरुष एकल और महिला एकल प्रतियोगिता होती थी।
इसी रूप में तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था, जब तक कि 1988 के ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक में दलों द्वारा प्रतियोगिता को नहीं जोड़ा गया। 1972 को आधुनिक तीरंदाजी प्रतियोगिता का शुरुआत माना जाता है। इस आयोजन से इसमें मानक रूप का उपयोग किया जाने लगा और इसमें कई देश हिस्सा लेने लगे। आधुनिक ओलिम्पिक तीरंदाजी में चार पदकों के लिए स्पर्धा होती है। पुरुष एकल, महिला एकल, पुरुषों की टीम और महिलाओं की टीम। इन सभी स्पर्धा में दूरी केवल 70 मीटर ही होती है।
विदेश से मंगानी पड़ती हैं बो (धनुष) :
वैसे तो हमारे देश की मौजूदा सरकार का नारा है मेक इन इंडिया लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी स्पोर्ट्स के कई ऐसे इक्यूपमैंट हैं जिनका निर्माण हमारे देश में नहीं किया जाता है। उसके लिए खिलाडिय़ों को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे ही आर्चरी में प्रयोग होने वाली बो (धनुष) तथा ऐरो (बाण) को विदेश से मंगाना पड़ता है। ऐसे में खिलाडिय़ों को कुछ अधिक राशि खर्च करनी पड़ती है।
जानकारी के रुझान प्रकार अनुसार आर्चरी में प्रयोग होने वाली कम्पाऊंड राऊंड की बो (धनुष) तथा रिकर्व राऊंड की धनुष विदेशों से मंगानी पड़ती है, जिसकी कीमत तकरीबन 2.50 लाख से 3.5 लाख रुपए तक होती है लेकिन खिलाडिय़ों की शुरूआत में प्रयोग होने वाली बो (धनुष), जो इंडियन राऊंड की होती है, वह बाजार से 5 हजार रुपए तक में मिल जाती है। ऐसे में इंडियन बो से शुरूआत करने के बाद ही दूसरे इवैंट में खिलाड़ी प्रवेश करता है।
ऐरो (बाण) भी मंगाया जाता है विदेश से :
आर्चरी में प्रयोग होने वाले ऐरो (बाण) भी विदेशों से मंगवाए जाते हैं। जानकारी के अनुसार प्रतियोगिता के दौरान खिलाडिय़ों की ओर से तीन तरह के बाणों का प्रयोग किया जाता है। खिलाडिय़ों द्वारा अधिकतर ऐरो (बाण) यू.एस.ए. से मंगाए जाते हैं, जिनकी कीमत तरीबन 32-40 हजार रुपए के हिसाब है, जिसमें 12 ऐरो मिलते हैं। वहीं इंडियन ऐरो की कीमत 100 से 150 रुपए के बीच होती है।
तीन तरह से खेली जाती है प्रतियोगिता :
आर्चरी खेल प्रतियोगिता में तीन प्रकार के मुकाबले खेले जाते हैं लेकिन इंटरनैशनल स्तर पर यह प्रतियोगिता दो प्रकार की ही होती है। इसके साथ ही ओलिम्पिक में भी यह दो प्रकार की खेली जाती है, जिसमें पहली प्रतियोगिता कम्पाऊंड राऊंड तथा दूसरी रिकर्व राऊंड की प्रतियोगिता शामिल है, जबकि जूनियर स्तर पर इंडियन राऊंड के मुकाबले खेले जाते हैं। यह वह राऊंड होता है, जहां से जूनियर खिलाडिय़ों की ओर से आर्चरी की शुरूआत की जाती है। कम्पाऊंड राऊंड तथा रिकर्व राऊंड में प्रयोग होने वाली बो (धनुष) का निर्माण भी भारत में नहीं किया जाता है। यह बो कोरिया व चीन से मंगाई जाती है।
सैंटर में हैं कुछ खामियां :
खेल विभाग की ओर से आर्चरी खिलाडिय़ों को पूरे इक्यूपमैंट उपलब्ध नहीं करवाए जाते हैं। खिलाडिय़ों की ओर से ही अपने इक्यूपमैंट लाए जाते हैं। इक्यूपमैंट को लेकर कई बार खेल विभाग ने प्रोपोजल बनाया है लेकिन खेल विभाग अभी तक सामान उपलब्ध नहीं कर सका। इन दिनों सैंटर में तकरीबन 50-60 खिलाड़ी अभ्यास कर रहे हैं लेकिन अभ्यास करने के लिए इन खिलाडिय़ों के पास पर्याप्त टारगेट ही उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में खिलाडिय़ों की ओर से किस प्रकार निशाना साधा जा सकता है।
आर्चरी में ही करियर बनाना है : निशिता
सैक्रेड हार्ट स्कूल-26 की 9वीं कक्षा की छात्रा निशिता का कहना है कि उन्हें बचपन से एकलोल पसंद है, जिसके कारण उन्होंने आर्चरी को ही खेलने का फैसला किया। उन्होंने बताया कि उनका लक्ष्य इंटर स्कूल तथा नैशनल जाने वाली टीम में जगह बनाना है। उन्होंने कहा कि आर्चरी खेल का सबसे बढिय़ा साधन है, जिसमें युवा अपना करियर थोड़ी सी मेहनत से बना सकता है। उन्होंने कहा कि वह इस खेल में ही करियर बनाने की सोच रही हैं, जिससे कि पदक जीतकर देश व शहर का नाम रोशन कर सकें।
पढ़ाई में भी मिलती है मदद : तनिष्का
खेल के साथ ही पढ़ाई में भी इस खेल से मदद मिलती है। यह कहना है सैक्रेड हार्ट स्कूल की छात्रा तनिष्का सरीन का। उन्होंने कहा कि आर्चरी खेल 2 साल पहले ही शुरू किया था, जिसका फायदा मुझे खेल के साथ पढ़ाई में भी देखने को मिला। उन्होंने कहा कि आर्चरी खेल से आपका ध्यान एकाग्रचित्त रहता है। दिमाग के सोचने की शक्ति भी बढ़ जाती है। इसका प्रयोग पढ़ाई में किया जा सकता है। तनिष्का हाल ही में आयोजित अंडर-9 नैशनल चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करने में सफल रहीं। इसके साथ ही तनिष्का को प्रशासन की ओर से बेहतरीन खेल व पढ़ाई के कारण स्टेट अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
आर्चरी में जल्दी बनता है करियर : हर्षना
बाल निकेतन स्कूल की छात्र हर्षना भी इन दिनों सुखना लेक आर्चरी सैंटर में अभ्यास कर रही हैं। उन्होंने बताया कि आर्चरी खेल इसी साल शुरू किया है। अब वह इंटर स्कूल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि आर्चरी खेल में कैरियर रुझान प्रकार जल्दी बनता है। वह रोजाना तकरीबन 3-4 घंटे अभ्यास करती हैं। उन्होंने कहा कि अब उनका ध्यान इंटर स्कूल आर्चरी प्रतियोगिता पर लगा है, जिसमें बेहतरीन प्रदर्शन करके नैशनल में अपनी दावेदारी पेश करनी है।
सबसे बेहतरीन खेल है आर्चरी : खुशी
खिलाडिय़ों को कैरियर बनाने के लिए सबसे बेहतरीन खेल आर्चरी है, क्योंकि इस प्रतियोगिता में प्रतिभागियों की संख्या कम है। वहीं आर्चरी खेल को लेकर लोगो में जागरूकता भी नहीं है। यही नहीं, खुशी वर्मा ने कहा कि कम अभिभावक ही चाहते हैं कि उनका बेटा क्रिकेट खेलना छोड़कर आर्चरी खेलना शुरू करे लेकिन आर्चरी एक ऐसा खेल है कि यदि खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन करेगा तो उसको आर्चरी द्वारा नौकरी का भी बेहतरीन मौका मिलता है। खुशी ने कहा कि सैंटर में ऐसे कई लड़के हैं जो सरकारी नौकरी कर रहे हैं।
सुखना लेक से नैशनल स्तर के खिलाड़ी :
सुखना लेक से आर्चरी में कई इंटरनैशनल स्तर के खिलाड़ी उभरकर रुझान प्रकार सामने आ रहे हैं, जिसके कारण सुखना लेक पर अभ्यास कर रहे युवा व नन्हे खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। यह खिलाड़ी उभकर आए आगे।
दवेंद्र
गुंचा
गुंजन
शिखा
अमृत
तरनजीत
पारस रुझान प्रकार
अमित
इंटरनैशनल स्तर के खिलाड़ी
कपिल
गुंजन कुमारी
अमंरेद्र सिंह
नवदीप बराड़
प्रियंका
खेल विभाग के पास ये हैं इक्यूपमैंट
टारगेट 10
इंडियन राऊंड की बो(धनुष) 10
कम्पाऊंड राऊंड की बो(धनुष) 02
रिकर्व राऊंड की बो (धनुष) 06