मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे

मेरी नजर में उनका सबसे साहसी और सुधारवादी कदम था नया भूमि अधिग्रहण विधेयक। वह इकलौता ऐसा कदम है जिससे वह पीछे हटे। मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे अपनी सत्ता और लोकप्रियता के शिखर पर वह यह जोखिम लेने से पीछे हट गए। छह साल में ऐसा केवल एक बार हुआ। सबसे बुरे और बिना सोचे समझे लिए गए नोटबंदी के निर्णय पर वह टिके रहे। इससे उन्हें राजनीतिक लाभ भी मिला। कम से कम उत्तर प्रदेश के चुनाव में जो नोटबंदी के तत्काल बाद हुए थे। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे उनकी निर्णायक नेता की छवि और मजबूत हुई थी। मुक्त बाजार सुधार, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा, कम शुल्क दरों, मुक्त व्यापार, कम कर दर और न्यूनतम सरकार का समर्थक होते हुए मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अपनी दलील के समर्थन में थॉमस पिकेटी का सहारा लेना पड़ेगा। मैं उनकी पहली किताब को सतही मानता हूं लेकिन अपनी दूसरी किताब कैपिटल ऐंड आइडियोलॉजी में उन्होंने समझदारी की बात की है। वह लिखते हैं, 'असमानता न तो आर्थिक है और तकनीकी। यह वैचारिक मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे और राजनैतिक है।' उनके मुताबिक यह तब तक बनी रहेगी जब तक मजबूत नेता इसके बावजूद अपनी प्रभुताशाली राजनीति और विचारधारा के साथ फलते-फूलते रहेंगे।
बाजार पूंजीकरण-जीडीपी अनुपात 13 साल के उच्चस्तर पर
भारतीय इक्विटी बाजार का आर्थिक बुनियाद से आगे बढऩा जारी है। पिछले वित्त वर्ष में हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था ने 70 साल का सबसे खराब प्रदर्शन किया, लेकिन सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया। इसके परिणामस्वरूप भारत का बाजार पूंजीकरण व सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 13 के उच्चस्तर 115 फीसदी को छू गया।
यह अनुपात दिसंबर 2008 के बाद सर्वोच्च स्तर है क्योंकि तब यह 150 फीसदी की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था। इसकी तुलना में पिछले साल मार्च के आखिर में यह अनुपात 11 साल के निचले स्तर 56.8 फीसदी को छू गया था और इस साल मार्च के आखिर में 100 फीसदी के करीब था।
सभी सूचीबद्ध कंपनियोंं का संयुक्त बाजार पूंजीकरण पिछले साल मार्च से दोगुना हो गया है यानी 113.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 226.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इसकी तुलना में मौजूदा कीमत पर भारत की जीडीपी वित्त वर्ष 21 में तीन फीसदी सिकुड़कर करीब 197 लाख करोड़ रुपये रह गई, जो एक साल पहले 203 लाख करोड़ रुपये रही थी।
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थोड़े मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे को बहुत समझे India Today Hindi | July 28, 2021 कोविड के ताजातरीन दिशानिर्देश कहते हैं कि हल्के संक्रमण वाले मामलों में कोई दवाई न दी जाए. आखिर क्यों? सोनाली आचार्जी
जब भी मैं कुछ ठोस खाना मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे खाती हूं, लगता है पेट में आग-सी भड़क उठी है." यह कहना है कोलकाता की 39 वर्षीया साउंड इंजीनियर सुप्रिया मलिक का. उनकी कोविड जांच दो महीने पहले नेगेटिव आई थी. तब से लगातार गैस्ट्रोइंटस्टाइनल (जीआइ) यानी पेट और पाचन की परेशानियों से उनका वजन 15 किलो घट गया. मलिक को हल्का कोविड हुआ था. करीब दो दिन बुखार रहा और थोड़ी सूखी खांसी. वे बताती हैं कि डर के मारे उन्होंने खुद ही ऐंटीबायोटिक दवा डॉक्सीसाइक्लीन ले ली, जो भारत में डॉक्सी 100 के नाम से बिकती है. उनके पिता को हल्की बीमारी के लिए यह दवा दी गई थी और उन्हीं का परचा देखकर मलिक ने यह ले ली. लेकिन दवाई लेने के बाद उन्हें शरीर में कमजोरी महसूस होने लगी. यही नहीं, उन्हें पहले गैस्ट्रोइसोफैगल रिफ्लक्स बीमारी रही थी, मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे जो और बढ़ गई. फिलहाल कोलकाता के अपोलो अस्पताल में इलाज करा रहीं मलिक कहती हैं, "पेट की परेशानियां पूरे परिवार में हैं. मेरे डॉक्टर का कहना है कि मुझे डॉक्सी 100 की जरूरत नहीं थी. इसे लेने के कारण आंत से अच्छे बैक्टीरिया निकल गए. तभी से मुझे पेट और पाचन की गंभीर परेशानियां रहने लगी.' महामारी के दौरान ऐंटीबायोटिक की खपत में बढ़ोतरी ने चिकित्सा विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की माइक्रोबायोलॉजिस्ट कामिनी वालिया कहती हैं, "सकंडरी बैक्टीरियल इफेक्शन के डर या कोविड का निश्चित इलाज नहीं होने से जमकर ऐंटीबायोटिक दवाइयां लिखी गईं. ऐंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध अपने आप में भारत में खामोश महामारी है, जिसे कोविड और बढ़ा रहा है."
मजबूत नेता की आर्थिक सफलता जरूरी नहीं
अब वक्त आ गया है कि भारतीय राजनीति के हम जैसे विश्लेषक दो स्वीकारोक्तियां करें। पहली, हम पिछले कुछ समय से गलत प्रश्न पर बहस कर रहे हैं। और दूसरी यह कि हम गलत जवाब का साथ देते रहे। सन 1991 के आर्थिक सुधारों के मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे बाद से ही यह सवाल बना रहा है कि क्या अच्छी अर्थनीति अच्छी राजनीति की राह बनाती है? दूसरे शब्दों में क्या आप आर्थिक सुधार करके, सरकार और अफसरशाही का आकार घटाकर, कुछ ताकत बाजार को मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे देकर, वृद्धि मजबूत बनाकर दोबारा चुनाव जीत सकते हैं? यदि नहीं तो इसके लिए क्या करना होगा? इसका उत्तर यह रहा है कि एक मजबूत नेता चुनें जो राजनीतिक जोखिम उठाने से डरता नहीं हो। केवल ऐसा करके ही अच्छी अर्थनीति हासिल की जा सकती है। ऐसे मजबूत नेता में यह राजनीतिक पूंजी होगी कि वह आर्थिक सुधारों के अलोकप्रिय दुष्परिणाम मसलन असमानता में इजाफा और पूंजीवाद का रचनात्मक विनाश आदि को मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे गौण बना सके। जाहिर है वह और उसके साथ हम सभी विजेता होंगे।
इस कंपनी ने 2017 में बेचे रिकॉर्ड 15.3 करोड़ फोन
शेनझेन स्थित इस कंपनी ने अपना नवीनतम फ्लैगशिप स्मार्टफोन 'पी20' और 'पी20 प्रो' इस हफ्ते की शुरुआत में पेरिस में लांच किया।
चीनी हैंडसेट निर्माता हुआवेई ने 2017 में कुल 15.3 करोड़ स्मार्टफोन की बिक्री की, जिसमें उसका उप-ब्रांड ऑनर भी शामिल है। इस अवधि में कंपनी को कुल 237.मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे 2 अरब यूआन (36.4 अरब डॉलर) का राजस्व प्राप्त हुआ, जोकि साल-दर-साल आधार पर 31.9 फीसदी की वृद्धि है। कंपनी ने शुक्रवार को कहा कि उपभोक्ता व्यवसाय में हुआवेई और ऑनर तेजी से आगे बढ़ रही है, और संबंधित बाजारों में उनकी बिक्री में तेज वृद्धि दर्ज की गई है।
मार्केट रिसर्च कंपनी काउंटरपॉइंट की मार्केट मॉनिटर सर्विस रिपोर्ट मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे में बताया गया है कि कंपनी के 2017 के परिणाम बेहतर दिखते हैं, क्योंकि ऑनर ब्रांड ने चीन के भीतर और चीन के बाहर बिक्री को बढ़ावा देने में मदद की है। काउंटरपॉइंट ने कहा, “हुआवेई ने 2017 की अंतिम तिमाही में चीनी स्मार्टफोन बाजार में प्रमुख स्थान हासिल किया और पूरे साल के दौरान साल-दर-साल आधार पर 19 फीसदी की वृद्धि दर हासिल की। इससे दुनिया के तीसरे सबसे बड़ेे स्मार्टफोन ब्रांड को स्मार्टफोन बाजार की 19 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने में मदद मार्केट रिसर्च करके जरुरत को समझे मिली।”
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भारत सहित दुनिया भर में ताजे पानी की हर तीसरी मछली पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह जानकारी हाल ही में जारी रिपोर्ट ‘द वर्ल्डस फॉरगॉटन फिशेस’ में सामने आई है, जिसे जैवविविधता के संरक्षण पर काम कर रही 16 संस्थाओं ने मिलकर तैयार किया है। रिपोर्ट ने इसके लिए बढते प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और मछलियों के जरुरत से ज्यादा हो रहे शिकार को जिम्मेवार माना है।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 वर्षों में मीठे पानी की प्रवासी मछलियों की आबादी में तकरीबन 76 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं 30 किलो से अधिक वजन वाली मछलियां सभी नदियों से लगभग विलुप्त हो गई हैं। इन मेगाफिश की वैश्विक आबादी में 94 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। गौरतलब है कि मीठे पानी में मिलने वाली मछलियों की 80 प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं, जिनमें से 16 प्रजातियों पिछले वर्ष को विलुप्त मान लिया गया था।