क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है

रुपये में कैसे होगा अंतरराष्ट्रीय व्यापार? केंद्र सरकार का जोर क्यों
यूएस डॉलर (USD) के बजाय भारतीय रुपये (INR) में अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade) को बढ़ावा देने पर केंद्र सरकार ने अपने कदम बढ़ा दिए हैं. केंद्रीय वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) इस पहल के तरीकों पर चर्चा करने के लिए देश के बैंकों, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालयों सहित हितधारकों के साथ बैठक कर रहा है. बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), भारतीय बैंक संघ, बैंकों के प्रतिनिधि निकाय और उद्योग निकायों के प्रतिनिधि क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है शामिल होंगे.
सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों से कहा जाएगा कि वे निर्यातकों को रुपये के कारोबार पर बातचीत करने के लिए कहें. हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बाद बदले अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में भारत सरकार ने रुपये में कारोबार को बढ़ाने के विकल्प पर विचार तेज किया हुआ है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार रुपये में कैसे हो सकता है? साथ ही सरकार क्यों इस पर जोर दे रही है?
क्या है पृष्ठभूमि
भारतीय रिजर्व बैंक ने 11 जुलाई को एक सर्कुलर जारी कर कहा कि उसने "आईएनआर (INR) में चालान, भुगतान और निर्यात / आयात के निपटान के लिए एक अतिरिक्त व्यवस्था करने का फैसला किया है." आरबीआई ने कहा था, "भारत से निर्यात पर जोर देने के साथ वैश्विक व्यापार के विकास को बढ़ावा देना और आईएनआर में वैश्विक व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि का समर्थन करना उसका मकसद है."
भारत और अन्य देशों के बीच रुपये में व्यापार निपटान की अनुमति देने के कदम को मुख्य रूप से रूस के साथ व्यापार को लाभान्वित करने के लिए देखा गया था. इससे डॉलर के बहिर्गमन को रोकने और रुपये के मूल्यह्रास को "बहुत सीमित सीमा" तक धीमा करने में मदद मिलने की उम्मीद थी.
कैसे होगा मौद्रिक लेन-देन
किसी भी देश के साथ व्यापार लेनदेन का निपटान करने के लिए भारत में बैंक व्यापार के लिए भागीदार देश के कॉरेस्पॉन्डेंट बैंक/बैंकों के वोस्ट्रो खाते खोलेंगे. भारतीय आयातक इन खातों में अपने आयात के लिए INR में भुगतान कर सकते हैं. आयात से होने वाली इन आय का उपयोग भारतीय निर्यातकों को भारतीय रुपये में भुगतान करने के लिए किया जा सकता है. वोस्ट्रो खाता एक ऐसा खाता है जो एक कॉरेस्पॉन्डेंट बैंक दूसरे बैंक की ओर से रखता है. उदाहरण के लिए, एचएसबीसी वोस्ट्रो खाता भारत में एसबीआई द्वारा आयोजित किया जाता है.
मौजूदा सिस्टम क्या है
वर्तमान में नेपाल और भूटान जैसे अपवादों के साथ किसी कंपनी द्वारा निर्यात या आयात हमेशा विदेशी मुद्रा में होता है. इसलिए आयात के मामले में भारतीय कंपनी को विदेशी मुद्रा में भुगतान करना पड़ता है. मुख्य रूप से यह यूएस डॉलर है, लेकिन पाउंड, यूरो या येन वगैरह भी हो सकता है. भारतीय कंपनी को निर्यात के मामले में विदेशी मुद्रा में भुगतान किया जाता है और कंपनी उस विदेशी मुद्रा को रुपये में बदल देती है. क्योंकि उसे ज्यादातर मामलों में अपनी आवश्यकताओं के लिए रुपये की आवश्यकता होती है.
अपेक्षित उपयोग
बैंक ऑफ क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के हवाले से एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आरबीआई के आदेश में ऐसा नहीं कहा गया था कि इस व्यवस्था का मुख्य रूप से रूस के लिए उपयोग किए जाने की उम्मीद थी. "यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर प्रतिबंध हैं और देश स्विफ्ट सिस्टम (विदेशी मुद्रा में भुगतान के लिए बैंकों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रणाली) से दूर है. इसका मतलब है कि भुगतान विदेशी मुद्रा में नहीं करना है और इस व्यवस्था से रूस और भारत दोनों को मदद मिलेगी. ”
व्यवस्था का विस्तार
सबनवीस ने कहा कि इसकी संभावना नहीं है कि इस व्यवस्था को अन्य देशों तक बढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं, लेकिन अन्य इसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं. क्योंकि उन्हें अपने आयात के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता हो सकती है." उन्होंने कहा कि श्रीलंका भी हमें डॉलर या किसी अन्य विदेशी मुद्रा में भुगतान करना चाहता है. हालांकि, इस व्यवस्था से रुपये की गिरावट को किसी भी हद तक रोकने में मदद की उम्मीद नहीं थी. रुपया सभी वैश्विक मुद्राओं की तरह डॉलर के मुकाबले मूल्यह्रास ( कीमत का गिरना) कर रहा है. इसकी सामान्य प्रवृत्ति अब कई महीनों से लगातार कमजोर होती जा रही है.
भारतीय वैश्विक परिषद
अपनी वर्तमान विदेशी मुद्रा संकट के बीच श्रीलंका ने अगस्त 2021 में देश में आपातकाल की घोषणा की थी। श्रीलंका के ज्यादातर बैंक आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए धन मुहैया कराने हेतु विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहे हैं। देश के राजस्व में करीब 80 अरब अमेरिकी डॉलर की कमी आई है। क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है [i] सेंट्रल बैंक ने एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 200 रुपये से अधिक की दर से वायदा कारोबार और रुपये के स्पॉट ट्रेडिंग (हाज़िर कारोबार) पर प्रतिबंध लगा दिया है [ii] । इसके कारण इस द्वीपीय राष्ट्र में विदेशी मुद्रा संकट और गंभीर हो गया है। हालांकि, यह स्थिति रातोंरात नहीं बनी है। इसके कई कारण हैं जैसे 2019 में ईस्टर बम हमले, कोविड-19 महामारी का फैलना और कई राजनीतिक फैसले जिन्होंने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए। आसन्न संकट को भांपते हुए सरकार ने इस साल की शुरुआत में ही वाहनों, खाद्य तेलों और कुछ अन्य वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाकर इसे टालने की कोशिश की लेकिन इससे कुछ विशेष लाभ नहीं हुआ। इस संकट की ओर ले जाने वाले कई महत्वपूर्ण कारकों में से कुछ महत्वपूर्ण कारकों का विश्लेषण इस लेख में किया गया है।
2019 में कोलंबो में हुए सीरियल बम विस्फोट के बाद से देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 10% का योगदान करने वाला पर्यटन उद्योग बुरे दौर से गुजर रहा है। 21 अप्रैल 2019, ईस्टर रविवार को, आत्मघाती हमलावरों ने कोलंबो के तीन चर्च और तीन आलिशान होटलों को अपना निशाना बनाया था। हमले के बाद से काफी समय तक श्रीलंका में पर्यटकों का आना कम रहा। पर्यटन के क्षेत्र में 70% तक की गिरावट दर्ज की गई और इसके कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। पर्यटकों की कमी के कारण विदेशी मुद्रा संकट पैदा हो गया, जुलाई 2020 के आखिर में विदेशी मुद्रा भंडार कम हो कर 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया जबकि पिछले वर्ष की क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है तुलना में अर्थव्यवस्था में 3.6% [iii] की कमी दर्ज की गई।
इससे पहले की स्थिति सामान्य होती और पर्यटन उद्योग रफ्तार पकड़ता, कोविड -19 ने श्रीलंका समेत पूरे विश्व को प्रभावित कर दिया। हालांकि पहली दो लहरों ने श्रीलंका में कम बर्बादी मचाई लेकिन तीसरी लहर ने तो पूरे द्वीप को बर्बाद ही कर दिया। हालांकि कोविड महामारी के शुरुआती लहरों के दौरान श्रीलंका की स्थिति अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत अच्छी रही, लेकिन चीन और यूरोपीय संघ के देशों जैसे इसके प्रमुख निर्यात गंतव्य स्वास्थ्य संबंधी गंभीर आपात स्थितियों से जूझ रहे थे। इसलिए, इन देशों में श्रीलंका से किया जाना वाला निर्यात स्वाभाविक रूप से प्रभावित हुआ। परिधान के कई कारखाने, जो निर्यात की एक प्रमुख वस्तु और श्रीलंका के लिए विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत हैं, महीनों तक बंद पड़े रहे।
निर्माण क्षेत्र को छोड़कर, बीते कुछ वर्षों में श्रीलंकाई उद्योगों को शायद ही कोई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मिला हो। इसके अलावा, मार्च 2020 में, कोलंबो स्टॉक एक्सचेंज (सीएसई/ CSE) में विदेशी फंडों के बहिर्वाह के कारण एक दिन में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई। विदेशी निवेशकों द्वारा रखी गई सरकारी हुंडी और सरकारी बॉन्ड में 9.03% (8.236 अरब रुपये) की जबरदस्त कमी हुई, इसके कारण इसी माह के पहले दो सप्ताहों में 19.6 अरब रुपयों का कुल विदेशी मुद्रा बहिर्वाह हुआ [iv] । स्टॉक एक्सचेंज में हुई गिरावट निश्चित रूप से कोविड-19 का नतीजा था। साल 2020 के दौरान विदेशी प्रेषण में 2.7 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट के साथ समस्या बढ़ गई थी क्योंकि विदेशों में काम करने वाले श्रीलंकाई महामारी से बुरी तरह प्रभावित थे [v] ।
अब तक श्रीलंका पहले से ही मुद्रा संकट के कठिन दौर से गुजर रहा था। नकदी की कमी से निपटने के लिए श्रीलंका के सेंट्रल बैंक ने बीते 18 महीनों में 800 अरब रुपए छापे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ रही है [vi] । पैसे के इस प्रवाह ने आपूर्ति को स्थिर बनाए रखते हुए मांग में वृद्धि की है। इसके कारण उच्च मुद्रास्फीति की बुनियादी आर्थिक समस्या पैदा हुई जिसके परिणामस्वरूप मुद्रा का अवमूल्यन हुआ, आयात महंगा हो गया और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बहुत बढ़ गया। मार्च 2020 के पहले सप्ताह से ज्यादातर प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले श्रीलंकाई रुपये का अवमूल्यन शुरु हो गया। विशेष रूप से, यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हुआ और 198.46 रुपये (30 मई 2021 को) के स्तर पर पहुँच गया, यह इतिहास में अब तक के सबसे बड़े अवमूल्यन में से एक था [vii] । रुपये के वर्तमान अवमूल्यन ने अनिवार्य रूप से देश के आयात खर्च में वृद्धि की और परिणामस्वरूप इसका विदेशी ऋण बोझ बढ़ गया।
इस विदेशी मुद्रा संकट का एक अन्य कारण देश का अपनी आवश्यक वस्तुओं के लिए आयात पर अत्यधिक निर्भरता भी है। श्रीलंका दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं जैसे चीनी, दालें, अनाज और दवाओं के लिए लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है और इस स्थिति में देश अपने आयात बिलों का भुगतान करने के लिए विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा है, भोजन की कमी भी है। सरकार द्वारा जैविक खेती करने और रसायानिक उर्वरकों के प्रयोग पर रोक लगाने के अचानक किए गए फैसले से घरेलू खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आई और खाद्य मूल्य में बहुत अधिक वृद्धि हुई।
उपरोक्त सभी कारकों ने श्रीलंका को गंभीर विदेशी मुद्रा संकट में डाल दिया है। अब वह ऐसी स्थिति में है जहां सरकार के लिए आपातस्थिति से बाहर निकलने के लिए दूसरे देशों से मदद लेना अनिवार्य हो गया है। देखना यह होगा कि अब श्रीलंका की सरकार क्या कदम उठाती है।
*डॉ. राहुल नाथ चौधरी, रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
[i] Central Bank of Sri Lanka.
[iv] Deyshappriya, N R Ravindra. (17 Jul, 2021). Covid 19 and the Sri Lankan Economy. Engage-Economic and Political Weekly. Vol. 56, Issue No. 29
[v] Gunadasa, S (2020): Sri Lankan Government Responds to COVID-19 by Mobilising the Military and Helping the Financial Elite. World Socialist Website, Available at: https://www.wsws.org/en/articles/2020/03/18/sril-m18.html. Accessed on10.9.2021
[vi] Nirupama Subramanian (Sep. 9,2021) Explained: The perfect storm that has led to Sri Lanka’s national ‘food emergency’. Indian Express. Available at: https://indianexpress.com/article/explained/sri-lanka-food-emergency-debt-burden-7496044/ Accessed on: 10.9.2021
[vii] Deyshappriya, N R Ravindra. (17 Jul, 2021). Covid 19 and the Sri Lankan Economy. Engage-Economic and Political Weekly. Vol. 56, Issue No. 29
मोदी सरकार के सत्ता में 8 साल पूरे, देखिए इन 'अच्छे दिनों' का पूरा रिपोर्ट कार्ड
2014 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से जीत हासिल की. केंद्र की सत्ता पर अब बीजेपी ने 8 साल पूरे कर लिए हैं. केंद्र की सत्ता संभालते ही मोदी सरकार ने 'अच्छे दिन', 'महंगाई से मुक्ति' किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था. मोदी सरकार अपने वादे पर कितनी खरी उतरी है, उस पर बात करेंगे.
मोदी सरकार के क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है सत्ता में 8 साल पूरे
gnttv.com
- नई दिल्ली,
- 25 मई 2022,
- (Updated 25 मई 2022, 10:49 AM IST)
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में हुआ इजाफा
8 सालों में स्कूलों की संख्या घटी
2014 में लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने 282 सीटों पर जीत हासिल की. ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी ने बहुमत हासिल किया था. 'अच्छे दिन', 'महंगाई से मुक्ति' किसानों की आय दोगुनी करने के वादे के साथ अब बीजेपी केंद्र की सत्ता में 8 साल पूरे कर चुकी है क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है तो कितना बदलाव हुआ है, इसे समझ लेते हैं.
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में कितना हुआ बदलाव
इकोनॉमिक सर्वे 2021-22 के आंकड़ों के मुताबिक नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने, तब भारत की जीडीपी 112 लाख करोड़ रुपये के आसपास थी. आज भारत की जीडीपी 232 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है. मोदी सरकार में आम आदमी की कमाई में बड़ा इजाफा हुआ है. मोदी सरकार से पहले आम आदमी की सालाना आय 80 हजार रुपये से भी कम थी. अब वो 1.50 लाख रुपये से ज्यादा है. मोदी सरकार में विदेशी मुद्रा भंडार ढाई गुना तक बढ़ा है. कारोबार करने और अपनी मुद्रा को मजबूत बनाए रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार जरूरी होता है. अभी देश में 45 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार है. एक्सपोर्ट की बात करें तो 2021-22 में भारत ने 28 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का सामान एक्सपोर्ट किया था, जबकि 2014 में 19.05 लाख करोड़ का एक्सपोर्ट हुआ था.
शिक्षा के क्षेत्र में इतना हुआ बदलाव
किसी भी देश के विकास के लिए अच्छी शिक्षा बहुत जरूरी है. मोदी सरकार में शिक्षा का बजट 1.4 लाख करोड़ हो गया है, जबकि 2014 से पहले ये 79,451 करोड़ था. हालांकि मोदी सरकार के 8 सालों के दौरान देश में स्कूलों की संख्या कम हुई है. मोदी सरकार के आने से पहले देश में 15.18 लाख स्कूल थे, जो अब घटकर 15.09 लाख हो गए हैं. स्कूली शिक्षा में भारत भले ही अब भी कमजोर है. लेकिन, यूडीआईएसई (UDISE) के मुताबिक मोदी सरकार में मेडिकल कॉलेज और एमबीबीएस की सीट, दोनों की ही संख्या बढ़ी है. अभी देश में 596 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें 88 हजार से ज्यादा एमबीबीएस की सीटें हैं.
स्वास्थ्य का ये है हाल
कोरोना ने बता दिया कि किसी देश के लिए मजबूत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर कितना जरूरी है. मोदी सरकार में स्वास्थ्य बजट में 130 फीसदी से ज्यादा क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है की बढ़ोतरी हुई. इस साल स्वास्थ्य के लिए सरकार ने साढ़े 86 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट रखा है. मोदी सरकार में डॉक्टरों की संख्या में 4 लाख से ज्यादा का इजाफा हुआ है. देश में 13.01 लाख एलोपैथिक डॉक्टर्स हैं. इनके अलावा 5.65 लाख आयुर्वेदिक डॉक्टर्स भी हैं. इस हिसाब से हर 834 लोगों पर एक डॉक्टर है.
खेती-किसानी का हाल
मोदी सरकार में किसानों का सबसे बड़ा आंदोलन हुआ. ये आंदोलन एक साल से ज्यादा चला. किसानों के आंदोलन के क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है बाद मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया था. किसानों का एमएसपी को लेकर भी विरोध था. आंकड़ों के मुताबिक, मोदी सरकार में प्रति क्विंटल गेहूं पर 665 रुपये और चावल पर 630 रुपये एमएसपी बढ़ी है. मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की कमाई दोगुनी करने का वादा किया था. लोकसभा में एग्रीकल्चर पर बनी संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक - 2018-19 में किसानों की हर महीने की कमाई 10,248 रुपये है, जबकि इससे पहले किसानों की कमाई और खर्च पर 2012-13 में सर्वे हुआ था. उस समय किसानों की महीने भर की कमाई 6,426 रुपये थी.
आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 : विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार वृद्धि, 400 अरब डॉलर के स्तर पर कायम
देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है और यह 400 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के स्तर पर बना हुआ है।
Reported by: Bhasha
Updated on: July 04, 2019 14:16 IST
Photo:PIB
Economic Survey 2019
नयी दिल्ली। देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है और यह 400 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के स्तर पर बना हुआ है। संसद में गुरुवार को पेश 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2017-18 के दौरान बाजार में रुपये की विनिमय दर 65-68 प्रति डॉलर पर रही, लेकिन 2018-19 में रुपया डॉलर के मुकाबले हल्का हो कर 70-74 तक चला गया था। रुपये में गिरावट मुख्य रूप से कच्चे तेल में उछाल की वजह से रही।
समीक्षा के अनुसार भारत की आयात क्रय क्षमता लगातार बढ़ रही है क्योंकि निर्यात की तुलना में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी कम रही है। समीक्षा के अनुसार 2018 के दिसंबर में भारत का विदेशी बकाया ऋण 521.1 अरब डॉलर था जो मार्च, 2018 की तुलना में 1.6 प्रतिशत कम है। दीर्घावधि का विदेशी बकाया ऋण 2018 के दिसंबर में 2.4 प्रतिशत घटकर 417.3 अरब डॉलर रहा गया। हालांकि देश के कुल विदेशी बकाया क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है ऋण में इसकी हिस्सेदारी पिछले वर्ष की समान अवधि के 80.7 प्रतिशत के लगभग बराबर 80.1 प्रतिशत रही।
2018-19 में देश से कुल 330.7 अरब डॉलर मूल्य वस्तुओं का निर्यात हुआ। इनमें सबसे ज्यादा पेट्रोलियम उत्पादों, कीमती पत्थरों, दवाओं, सोने और अन्य कीमती धातुओं का निर्यात शामिल है। इस अवधि में देश में कुल 514.03 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात किया गया। आयातित वस्तुओं में कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, मोती, कीमती और अर्द्ध-कीमती पत्थर तथा सोना प्रमुख रहे। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान भारत का व्यापार घाटा 183.96 अरब डॉलर रहा। इस दौरान अमेरिका, चीन, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब भारत के प्रमुख साझेदार बने रहे।
समीक्षा में व्यापार सुगमता के बारे में कहा गया है कि भारत ने अप्रैल, 2016 में विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुगमता समझौता की पुष्टि की और इसके तहत ही राष्ट्रीय व्यापार सुगमता समिति का गठन किया। समिति ने देश के आयात और निर्यात के उच्च शुल्क को घटाने में अहम भूमिका निभाई है। इसकी वजह से सीमापार व्यापार तथा देश के भीतर कारोबारी माहौल को सुगम बनाने के मामले में भारत का प्रदर्शन काफी बेहतर हुआ है।
समीक्षा में कहा गया है कि सरकार ने राष्ट्रीय लॉजिस्टिक कार्ययोजना के तहत राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति का मसौदा तैयार किया है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक वृद्धि को गति देना और देश के व्यापार को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना है।