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USD कीमत का इतिहास

USD कीमत का इतिहास
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अमेरिकी डॉलर सोने की कीमतों को कैसे प्रभावित करता है?

Facts about gold - Correlation between US dollar and gold

सोना हमारी जानकारी के अनुसार विनिमय के सबसे पुराने साधनों में से एक है और काफी लम्बे समय तक इसने एक मुद्रा की USD कीमत का इतिहास भूमिका निभायी है। आज जहाँ अन्य मुद्राओं ने यह भूमिका ले ली है, आधुनिक दौलत और सोने का आपसी सम्बंध नहीं खोया है।

गोल्ड स्टैंडर्ड के पतन के बाद, अमेरिकी डॉलर ही सोने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए वास्तविक मानक मूल्य निर्धारण तंत्र बन गया। फलत: दोनों एक दूसरे से बहुत करीब से जुड़े हैं। तो आइए देखते हैं अमेरिकी डॉलर सोने की कीमतों को कैसे प्रभावित करता है।

सोना एक बहुमुखी सम्पत्ति है, और इसकी कीमत दुनिया भर की सभी मुद्राओं के कुल अनुमानित मूल्य के प्रति संवेदनशील है। भय या भू-राजनैतिक उथल-पुथल के समय, सोने की कीमत में उछाल आता है, ठीक वैसे ही जैसे जुलाई में अमेरिका-चीन के बीच व्यापारिक चिंता के कारण हुआ था। हालाँकि, उसके तुरंत बाद अगस्त में, इन भू-राजनैतिक चिंताओं के बावजूद, सोना 20 महीनों में सबसे ज़्यादा नीचे गया। और इसके पीछे सबसे मुख्य कारण रहा डॉलर का तगड़ा होना। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि डॉलर के तेज़ होने के कारण या फिर अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था के कारण सोने के मूल्य में उतार-चढ़ाव हुआ हो।

डॉलर और सोने के बीच मूल्यों का सम्बंध महत्त्वपूर्ण है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सोने की कीमत को USD कीमत का इतिहास प्रभावित करने का एकमात्र कारक डॉलर ही है। चूँकि सोना खुद में ब्याज उत्पन्न नहीं करता, तो यह निवेश की मांग के लिए अन्य ब्याज वाली सम्पत्तियों से स्पर्धा करता है। जब ब्याज दर बढ़ता है, सोने की कीमत गिर जाती है क्योंकि अन्य सम्पत्तियों की मांग बढ़ जाती है। इसका कारण है कि अधिक ब्याज घटक के कारण अधिक प्रतिफल यानि रिटर्न कमाया जा सकता है।

तो अमेरिकी डॉलर सोने की कीमत को कैसे प्रभावित करता है?

तो आइए सोने की कीमत पर डॉलर के प्रभाव को विस्तार से समझते हैं। अमेरिका सोने का मुख्य उत्पादक नहीं है फिर भी अमेरिकी आधिकारिक भंडारों में विश्व के समस्त सोने का एक बहुत बड़ा भाग है। और यह स्थान उसने अपने अधिकांश स्टॉक को आयात करके बनाया है।

जब डॉलर कमज़ोर होता है तो सोना आयात करना अधिक महँगा पड़ जाता है। इसलिए, कम्पनियों को उत्पाद और सेवाएँ आयात करने के लिए अधिक डॉलर का भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा, बुलियन के व्यवसायिओं और सरकार को भी सोने के USD कीमत का इतिहास लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। इस कारण सोने की कीमत में वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत, डॉलर का मजबूत होना यानि सोने की कीमत में गिरावट।

डॉलर में गिरावट अमेरिकी ऋण के विदेशी धारकों को भी प्रभावित करती है, जो बदले में, अमेरिकी कोष और वहाँ USD कीमत का इतिहास की अर्थ-व्यवस्था में उनका विश्वास कम कर देता है। अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था में डगमगाया हुआ भरोसा भी सोने की कीमत को बढ़ाने में सहायक होता है।

इसी तरह, अमेरिकी डॉलर के मूल्य में गिरावट आर्थिक मुद्रास्फीति का एक लक्षण भी हो सकता है। कागज़ी मुद्राओं को गिरावट का खतरा होते ही लोग सोने की ओर रुख करने लगते हैं। बढ़ती मुद्रास्फीति सोने की कीमतों के लिए अच्छी है। और यदि अर्थ-व्यवस्था में विश्वास ख़त्म हो जाए तो मुद्रास्फीति के बाद की सोने की कीमत सकारात्मक भी हो सकती है। इस मुद्दे पर 2008 का सब-प्राइम संकट एक मामला है। उस दौरान, ज़मीन की कीमतमें भी गिरावट आयी और ईक्विटी में भी बहुत बड़ा सेल-ऑफ हुआ, जिससे सुरक्षित आश्रय होने के कारण, सारा ध्यान सोने की तरफ केंद्रित हुआ। दरअसल, उस समय, सोने की कीमत पर संकट का सकारात्मक प्रभाव काफी स्पष्ट रहा और सोने की कीमत ने करीब $1,900 प्रति औंस की ऐतिहासिक ऊँचाई हासिल की।

सोने और रुपये-डॉलर का समीकरण

भारतीय उपभोक्ता सोने को निवेश सम्पत्ति और श्रृंगार दोनों USD कीमत का इतिहास के रूप में देखते हैं। जनसंख्या का तीन-चौथाई भाग सोना खरीदने के पीछे मुख्य कारण बताता है उसका एक सुरक्षित निवेश होना, और बाकी के लिए सोना खरीदने के फैसले के पीछे कारण है श्रृंगार।

रुपये और डॉलर का आपसी सम्बंध भारत में सोने की कीमत तय करने में एक अहम भूमिका निभाता है हालाँकि इसका सोने की वैश्विक कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यहाँ की मांग स्थानीय आपूर्ति से पूरी होना तो दूर की बात है, सिर्फ वार्षिक मांग ही आयात से पूरी की जाती है। यदि डॉलर के आगे रुपया कमज़ोर पड़ जाए, तो डॉलर की कीमत से समीकृत करने के लिए रुपये में अधिक भुगतान करना पड़ेगा।

संक्षेप में कहें तो, डॉलर की कीमत में उछाल या गिरावट सोने की वैश्विक कीमत को विपरीत दिशा में प्रभावित करता रहेगा। हालाँकि अमेरिकी डॉलर सोने की कीमत को प्रभावित करने का एकमात्र कारक नहीं है, तो भी इतिहास गवाह है कि मुद्रास्फीति के समय, जब डॉलर का प्रदर्शन कुछ ख़ास नहीं चल रहा था, उस समय निवेशक USD कीमत का इतिहास सोने का ही सहारा लेते आये हैं।

अमेरिकी डॉलर फिर चर्चा में, दुनिया की इस शक्तिशाली रिजर्व करंसी का क्या है इतिहास?

दुनिया की अर्थव्यवस्था में डॉलर बेहद महत्वपूर्ण है.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डॉलर की उपेक्षा नहीं करने की सलाह देकर एक बार फिर इस अमे . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : April 23, 2022, 09:54 IST

नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डॉलर की उपेक्षा नहीं करने की USD कीमत का इतिहास सलाह देकर एक बार फिर इस अमेरिकी करंसी को चर्चा में ला दिया है. दुनिया की अर्थव्यवस्था में मजबूत स्थिति रखने वाला रूस, यूक्रेन पर हमले के कारण लगाए गए प्रतिबंध के कारण विदेशी कर्ज मामले में डिफॉल्ट कर चुका है. पिछले दिनों क्रेडिट रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने कहा था कि रूस अपने विदेशी डेट पर डिफॉल्ट कर चुका है, क्योंकि उसने बांडधारकों को 4 अप्रैल, 2022 को मेच्योर होने वाले बांड पर डॉलर के बदले रूबल में पेमेंट करने की पेशकश की थी.

भारत के संदर्भ में भी बात करें, तो कच्चे तेल या अन्य रॉ मेटीरियल का आयात डॉलर में करने या बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों के पैसे निकालने के कारण, इसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है. इससे आर्थिक और राजनीतिक जगत में चिंता की लकीरें खिंचतीं जा रही हैं.

आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका और पाकिस्तान भी डॉलर की ताकत से परिचय करवा चुका है. सवाल उठता है कि आर्थिक और सामरिक रूप से दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की करंसी यानी डॉलर इतना प्रभावशाली या मजबूत क्यों है. साथ ही, दुनिया में यह करंसी क्यों रिवर्ज करंसी के रूप में रखी जाती है. ​जानकारों के अनुसार, दुनिया को कर्ज का भुगतान करने के लिए अमेरिका की क्षमता में जो विश्वास है, वह वैश्विक व्यापार USD कीमत का इतिहास को सुविधाजनक बनाने के लिए डॉलर को सबसे अधिक स्थापित करंसी के रूप में रखता है.

वैसे, अमेरिका की करंसी की मजबूती का इतिहास पुराना है. डॉलर पहली बार 1914 में छपा था. अमेरिका में फेडरल रिजर्व एक्ट लागू होने के साथ केंद्रीय बैंक के रूप में फेडरल रिजर्व की स्थापना हुई. उसके 1 साल बाद करंसी की प्रिंटिंग शुरू हुई. फेड ने एंड्रयू जैक्सन के चित्र के साथ 10 डॉलर मूल्यवर्ग में फेडरल रिजर्व नोट जारी करना शुरू किया. 3 दशक बाद डॉलर आधिकारिक तौर पर दुनिया की रिजर्व करंसी बन गई.

1690 में पहली पेपर करंसी
वैसे, अमेरिका में पहली पेपर करंसी का इस्तेमाल 1690 में उस समय हुआ था, जब मैसाचुसेट्स बे कॉलोनी ने कॉलोनियल नोट जारी किए गए थे. इन नोटों का इस्तेमाल सैन्य अभियानों के लिए फंडिंग के लिए होता था. अमेरिका ने 1785 में आधिकारिक तौर पर स्पेनिश अमेरिकी पेसो के प्रतीक का उपयोग करते हुए डॉलर के सिंबल को अपनाया.

दुनिया में 9वें नंबर पर
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार सभी विदेशी बैंकों के करंसी भंडार में 59 फीसदी हिस्सा अमेरिकी डॉलर में है. वैसे, अमेरिका की इस करंसी की मजबूत स्थिति के बावजूद एक चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करंसी नहीं है. यूएसए टुडे अखबार के अनुसार, दुनिया की करंसी की लिस्ट में यह 9वें नंबर पर है. इस लिस्ट में पहले नंबर पर कुबैती दीनार है.

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जब 1 रुपया 13 डॉलर के बराबर हुआ करता था जानिए कैसे कम हुई रूपए की कीमत

रुपए की कीमत का इतिहास आज लगभग सभी लोग पैसे के पीछे भाग रहे है. लेकिन एक तरह से पैसा के पीछे भागना जायज भी है क्योंकि आज कल पैसे के बिना कोई काम नहीं होता है. आज के USD कीमत का इतिहास दैनिक जीवन में हर छोटी बड़ी जरुरत के लिए पैसो की आवश्यकता होती है. आज हम आपको हमारे भारत देश के रूपए के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी देने वाले है जो आप शायद इससे पहले भी जानना चाहते थे.

आज भी कुछ लोगो के मन में सबाल रहता है कि 1 डॉलर के हमें 67 रूपए क्यों चुकाने पड़ते है क्या कभी हमारा 1 रुपया 1 डॉलर के बराबर हुआ करता था तो ये सच है कि भारत की आजादी के समय 1 रुपया 1 डॉलर के बराबर हुआ करता था.

indian rupee and dollar history

jansatta

हमारे भारत में करंसी का इतिहास करीब 2500 साल पुराना हैं. सन 1917 में एक रुपया 13 डॉलर के बराबर हुआ करता था. लेकिन जब 1947 में भारत आजाद हुआ, एक रूपया एक डॉलर कर दिया गया. आजादी के वक्‍त देश पर कोई कर्ज नहीं था. लेकिन 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना के लिए सरकार ने कर्ज लिया. तब 1948 से 1966 के बीच एक डॉलर कीमत 4.‍66 रूपए के आसपास रहा थी. फिर धीरे रूपए की कीमत कम होने लगी. 1975 में एक डॉलर की कीमत 8.39 रूपए हो गयी इसके बाद 1985 में एक डॉलर 12 रूपए के बराबर हो गया था.

लेकिन रूपए की कीमत में गिरावट यंही नहीं रुकी 1991 में बेतहाशा मंहगाई, विकास दर कम होना और विदेशी रिर्जव कम होने से एक डॉलर 17.90 रूपए पर पहुंच गया. 1993 में एक डॉलर की कीमत 31.37 रूपए हो गयी. 2000 से 2010 के दौरान यह एक डॉलर की कीमत 40 से 50 रूपए तक पहुंच गई. 2013 में तो यह हद पार हो गई और यही एक डॉलर की कीमत 65.50 रूपए तक पहुंच गई. हालाकि अभी के समय रूपए की कीमत थोड़ी USD कीमत का इतिहास बड़ी है आज एक डॉलर की कीमत करीब 64.46 रूपए है.

एक डॉलर की कीमत 80 रुपये के करीब, TMC ने कसा तंज, क्या सेंचुरी बनाने का रखा है टारगेट? कहा-मोदी और रुपये में लुढ़कने की लगी है होड़

Rupee Vs Dollar: सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपये में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है. इसके बाद टीएमसी ने मोदी सरकार पर तंज कसते हुए पूछा है कि क्या सरकार ने सेंचुरी USD कीमत का इतिहास बनाने का टारगेट रखा है?

एक डॉलर की कीमत 80 रुपये के करीब, TMC ने कसा तंज, क्या सेंचुरी बनाने का रखा है टारगेट? कहा-मोदी और रुपये में लुढ़कने की लगी है होड़

Updated on: Jul 19, 2022 | 11:23 AM

डॉलर के मुकाबले रुपये (Rupee VsDollar) में एतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है. रुपया कमजोर होकर 80 के करीब पहुंच गया है. सोमवार को ये 15 पैसे कमजोर होकर रिकॉर्ड 79.97 पर बंद हुआ. इस बीच, इसे लेकर विरोधी दलों ने मोदी सरकार (Modi Government) पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. टीएमसी (TMC) ने रुपये की गिरावट को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है. टीएमसी ने रुपये की गिरावट पर मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि क्या केंद्र सरकार ने शतक बनाने का टारगेट रखा है? ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी और रुपये में लुढ़कने की होड़ लगी हुई है. बता दें कि आज से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में भी रुपये के टूटने का मुद्दा उठने की संभावना है. टीएमसी सूत्रों के अनुसार पार्टी के सांसद इस मुद्दे को आज संसद में उठाएंगे.

बता दें कि तृणमूल कांग्रेस लगातार मूल्य वृद्धि और पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमत में वृद्धि पर मोदी सरकार पर निशाना साधते रही है. ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर जनविरोधी नीति अपनाने का आरोप लगाया है.

डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरने पर टीएमसी ने कसा तंज

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PM @narendramodi,

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— All India Trinamool Congress (@AITCofficial) July 19, 2022

सोमवार को तृणमूल कांग्रेस ने ट्वीट किया, “रुपया पहली बार 80 प्रति अमेरिकी डॉलर पर पहुंचा! नरेंद्र मोदी, आप आगे क्या लक्ष्य रखते हैं? एक शतक? भाजपा के अमृत काल हमारे का हर दिन देश के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है. रुपया और मोदी के बीच होड़ लग रही है कि कौन ज्यादा गिरेगा!” तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि जिस तरह से रुपये लगातार गिर रहा है. वह बिगड़ती अर्थव्यवस्था का प्रतीक है और यह दिखाता है कि मोदी के शासनकाल में देश की आर्थिक स्थिति कितनी लचर हो रही है. बता दें कि हाल में टीएमसी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने देश की आर्थिक स्थिति की तुलना श्रीलंका से की थी.

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केंद्र सरकार ने वैश्विक परिस्थिति को ठहराया है जिम्मेदार

दूसरी ओर, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बीते 8 साल में (दिसंबर 2014 के बाद) डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमतों में 16.08 रुपए (25.39%) की गिरावट आई है. जनवरी 2022 से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले डोमेस्टिक करेंसी में लगभग 7.5% की गिरावट आई है. जनवरी में रुपया 73.50 के करीब था. वहीं केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमण का मानना है कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध और कच्चे तेलों की कीमत में लगातार हो रहा इजाफा और विश्व की आर्थिक स्थिति रुपये के गिरने का मुख्य कारण है. जापानी USD कीमत का इतिहास येन, यूरो और ब्रिटिश पाउंड की तुलना में भारतीय रुपये में कम गिरावट हुई है और यह अन्य की तुलना में ज्यादा मजबूत है.

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