सर्वोत्तम उदाहरण और सुझाव

विदेशी मुद्रा कला

विदेशी मुद्रा कला
रोहतक ब्यूरो
Updated Sun, 21 Feb 2021 01:05 AM IST

सुधारों को स्वीकार्य बनाने की कला, ताकि न आए विरोध की नौबत

पीएम पद की शपथ लेने के एक दिन पहले यानी 20 जून को नरसिंह राव को जब कैबिनेट सचिव ने इससे अवगत कराया कि देश के पास महज दो सप्ताह के आयात के लिए ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा है तो उन्होंने पूछा कि क्या आर्थिक हालत इतनी खराब है?

राजीव सचान : सेना में भर्ती के लिए घोषित की गई अग्निपथ योजना के विरोध में 20 जून को जो भारत बंद बुलाया गया, वह चूंकि निष्प्रभावी रहा, इसलिए उसे कोई याद नहीं रखने वाला, लेकिन 31 साल पहले इस तिथि का एक अन्य संदर्भ में विशेष महत्व है। इसी दिन नरसिंह राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया था। तब देश विषम स्थितियों से दो-चार था। जैसे आज यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे, वैसे ही उन दिनों खाड़ी युद्ध के कारण ऐसा हो रहा था।

पीएम पद की शपथ लेने के एक दिन पहले यानी 20 जून को नरसिंह राव को जब कैबिनेट सचिव ने इससे अवगत कराया कि देश के पास महज दो सप्ताह के आयात के लिए ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा है तो उन्होंने पूछा कि क्या आर्थिक हालत इतनी खराब है? इस विदेशी मुद्रा कला पर उन्हें बताया गया कि वास्तव में हालत तो इससे भी अधिक खराब है। इस जानकारी ने उन्हें अपनी प्राथमिकताएं बदलने को बाध्य किया और इसी के चलते उन्होंने पेशेवर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया। इसके बाद के इस इतिहास से हम सब अवगत हैं कि नरसिंह राव और मनमोहन सिंह ने किस तरह देश का कायाकल्प करने वाले आर्थिक सुधार किए, लेकिन यह आसान काम नहीं था। इसलिए और भी नहीं था, क्योंकि राव अल्पमत सरकार चला रहे थे।

नरसिंह राव को इसका आभास था कि विपक्षी नेताओं के साथ नेहरूवादी सोच वाले कांग्रेस नेता भी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का विरोध करेंगे, लेकिन वह एक चतुर राजनेता थे। उन्होंने नई औद्योगिक नीति का जो मसौदा तैयार कराया, उसमें नेहरूजी के ऐसे वक्तव्यों को खूब उल्लेख कराया, जिसमें उद्योग-व्यापार की महत्ता पर बल दिया गया था। बजट से पहले नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। हालांकि राव ने उद्योग मंत्रालय अपने पास रखा हुआ था, लेकिन एक रणनीति के तहत संसद में इस क्रांतिकारी नीति की घोषणा उद्योग राज्य मंत्री पीजे कुरियन ने की।

इस नीति ने लाइसेंस-कोटा-परमिट राज को खत्म किया। स्वाभाविक रूप से इस नीति की आलोचना विपक्षी नेताओं ने तो की ही, कई कांग्रेसी नेताओं ने भी की, लेकिन राव अपने करीबी नेताओं की ओर से ऐसे बयान दिलवाते रहे कि इंदिरा और राजीव गांधी भी ऐसे ही परिवर्तन के आकांक्षी थे। हालांकि वह नेहरू, इंदिरा और राजीव की नीतियों को पलट रहे थे, लेकिन प्रकट यह कर रहे थे कि वह उन्हीं की राह पर चल रहे हैं। वह यह सब इसलिए कर रहे थे ताकि पार्टी के अंदर विरोध के स्वर थमें।

उन्होंने ऐसी ही चतुराई इजरायल से कूटनीतिक संबंध स्थापित करने में भी दिखाई। वह इजरायल से कूटनीतिक रिश्ते कायम करने के पक्ष में थे, लेकिन इस्लामी देशों को नाराज भी नहीं करना चाहते थे। उन्होंने फलस्तीन लिबरेशन आर्गनाइजेशन के नेता यासिर अराफात को भारत निमंत्रित किया और उनसे कहा कि यदि आप यह चाहते हैं कि हम आपकी मदद कर सकें तो इसके लिए हमें इजरायल से बात करनी होगी। अराफात को यह तर्क समझ आया। उन्होंने सहमति दे दी और इस तरह 1992 में इजरायल से कूटनीतिक संबंध कायम हुए। इसके बाद के इतिहास से हम सब अवगत ही हैं।

उपरोक्त दोनों प्रसंग क्या कहते हैं? यही कि जितना आवश्यक सुधार और बदलाव के बड़े कदम उठाना होता है, उतना ही उन्हें लेकर अनुकूल वातावरण बनाना भी। इस कला में अटल बिहारी वाजपेयी भी पारंगत थे। 2003 में जब अमेरिका इराक में हमले की तैयारी कर रहा था, तब भारत पर इसके लिए दबाव डाल रहा था कि वह अपनी सेनाएं इराक भेजे। वाजपेयी इसके पक्ष में नहीं थे, लेकिन वह अमेरिका को सीधे इन्कार भी नहीं कर सकते थे। उन दिनों इसे लेकर खूब चर्चा हो रही थी कि क्या भारत को इराक में अमेरिका का साथ देना चाहिए? ऐसे माहौल में वाजपेयी ने माकपा नेता हरकिशन सिंह सुरजीत और भाकपा नेता एबी वर्धन को बुलाया। बातचीत के क्रम में जब इन नेताओं ने यह कहा कि हमें इराक में अपनी सेनाएं नहीं भेजनी चाहिए तो वाजपेयी ने कहा कि आप ऐसा कह तो रहे हैं, लेकिन कोई शोर नहीं सुनाई दे रहा है। समझदार को इशारा काफी था। इसके कुछ दिन बाद वामपंथी दलों ने देश भर में इराक युद्ध में भारत की किसी भी तरह की भागीदारी के विरोध में प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों के आधार पर वाजपेयी को अमेरिका से यह कहने में आसानी हुई कि हमारा जनमत इसकी अनुमति नहीं देता कि भारत की सेनाएं इराक जाएं।

इसमें संदेह नहीं कि मोदी सरकार ने बीते आठ साल में कई क्रांतिकारी और साहसी फैसले लिए हैं, लेकिन उसे अपने दो बड़े फैसले वापस भी लेने पड़े हैं। पहले कार्यकाल में भूमि अधिग्रहण कानून को और दूसरे कार्यकाल में कृषि कानूनों को। ये कानून इसीलिए वापस लेने पड़े, क्योंकि सरकार उनके पक्ष में अनुकूल वातावरण तैयार नहीं कर सकी और इन कानूनों से प्रभावित विदेशी मुद्रा कला होने वालों तक अपनी बात सही तरह नहीं पहुंचा सकी। इससे विरोधियों को लोगों को बरगलाने का मौका मिला। यह अच्छा है कि सरकार अग्निपथ योजना को लेकर अडिग है, लेकिन और भी अच्छा होता कि इस योजना की घोषणा के पहले व्यापक चर्चा होती। इस योजना की घोषणा के बाद जिस तरह अगले कई दिनों तक भावी सैनिकों यानी अग्निवीरों को आयु सीमा में छूट देने, केंद्रीय बलों एवं सार्वजनिक उपक्रमों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने, पुलिस भर्ती में प्राथमिकता देने, कौशल प्रमाण पत्र देने संबंधी जो तमाम घोषणाएं की गईं, वे यदि पहले दिन ही कर दी जातीं तो शायद इतना विरोध, हंगामा और बवाल नहीं होता।

Forex Reserves: लगातार दूसरे सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी, गोल्ड रिजर्व भी घटा

प्रतीकात्मक तस्वीर

India Forex Reserves: 3 दिसंबर, 2021 को खत्म हुए सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.783 अरब डॉलर घटकर 635.905 अरब . अधिक पढ़ें

  • पीटीआई
  • Last Updated : December 17, 2021, 21:58 IST

मुंबई. देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) में लगातार दूसरे सप्ताह कमी आई है. 3 दिसंबर, 2021 को खत्म हुए सप्ताह में यह 1.783 अरब डॉलर घटकर 635.905 अरब डॉलर रह गया. भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (RBI) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.

इससे पहले 26 नवंबर, 2021 को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.713 अरब डॉलर घटकर 637.687 अरब डॉलर रह गया था. वहीं, 19 नवंबर, 2021 को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 28.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 640.401 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. इससे पहले 12 नवंबर को खत्म हुए सप्ताह में यह 76.3 करोड़ डॉलर घटकर 640.11 अरब डॉलर रह गया था.

1.483 अरब डॉलर घटी एफसीए
आरबीआई के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार में यह गिरावट मुख्य रूप से फॉरेन करेंसी एसेट यानी एफसीए (Foreign Currency Assets) में आई कमी विदेशी मुद्रा कला की वजह से हुई जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. रिजर्व बैंक ने कहा कि रिपोर्टिंग वीक में भारत की एफसीए (FCA) 1.483 अरब डॉलर घटकर 573.181 अरब डॉलर हो गई. डॉलर में बताई जाने वाली एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है.

गोल्ड रिजर्व भी घटा
इसके अलावा रिपोर्टिंग वीक में गोल्ड रिजर्व 40.7 करोड़ डॉलर घटकर 38.418 अरब डॉलर पर पहुंच गया. इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी एमआईएफ (IMF) में देश का एसडीआर यानी स्पेशल ड्राइंग राइट (Special Drawing विदेशी मुद्रा कला Rights) 9 करोड़ डॉलर बढ़कर 19.126 अरब डॉलर रह गया. आईएमएफ में देश का आरक्षित विदेशी मुद्रा भंडार 1.7 करोड़ डॉलर बढ़कर 5.18 अरब डॉलर रहा.

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नौकरी गई तो कला अध्यापक संग्रह में रखीं विदेशी मुद्राएं बेचने को मजबूर

Rohtak Bureau

रोहतक ब्यूरो
Updated Sun, 21 Feb 2021 01:05 AM IST

विभिन्न देशों की मुद्राओं के संग्रह को दिखाते बिजेंद्र सिंह।

अमित भारद्वाज
हिसार। कला अध्यापक बिजेंद्र सिंह को विदेशी मुद्राओं का संग्रह करने का शौक परिवार के भरण पोषण के लिए छोड़ना पड़ा। उनके पास मुगल काल, ब्रिटिश काल की भारतीय मुद्राओं के अलावा करीब 200 देशों की मुद्राओं का संग्रह है। जिसे उन्हाेंने काफी जतन से जुटाया था, लेकिन पारिवारिक दायित्व को निभाने के लिए शहर के जनता मार्केट में खुद अपने संग्रह में रखी मुद्रा बेचने को मजबूर हैं।
बता दें कि अभी हाल ही में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर शिक्षा विभाग ने कला अध्यापकों को हटा दिया। ढाणी पीरावाली में तैनात कला अध्यापक बिजेंद्र सिंह का नाम भी हटाए गए शिक्षकों की सूची में है। विभाग द्वारा हटाए जाने से पहले पूर्व उन्होंने करीब 11 साल तक शिक्षा विभाग में नौकरी की है।
मुगल काल तक की मुद्राओं का संग्रह
बिजेंद्र सिंह के पास करीब 200 देशों की मुद्राओं का संग्रह है, जिसमें नोट व सिक्के दोनों शामिल हैं। इसके अलावा उनके पास ब्रिटिश काल, आजादी से पहले देश के अलग-अलग राज्यों की मुद्राएं, मुगल काल की मुद्राएं भी हैं। इस संग्रह को तैयार करने में उन्हें दो साल का समय लग गया।
अपने मुद्रा संग्रह की प्रदर्शनी भी लगा चुके हैं बिजेंद्र
बिजेंद्र सिंह के मुताबिक करीब तीन साल पहले नेपाल घूमने गए थे। इस दौरान उन्होंने पशुपति मंदिर के दर्शन के बाद से वहां की मुद्रा खरीदी थी, तब से उन्हें अलग-अलग देशों की मुद्रा एकत्रित करने का शौक पैदा हो गया। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से संपर्क कर अलग-अलग देशों की करेंसी एकत्रित करनी शुरू की। वह अपने संग्रह की स्कूल में प्रदर्शनी भी लगा चुके हैं।
संग्रह में दस लाख डॉलर का नोट
बिजेंद्र सिंह द्वारा लगाई गई स्टॉल पर काफी लोग आ रहे हैं और इन मुद्राओं के बारे में जानकारी लेने के साथ-साथ खरीद भी रहे हैं। खासतौर पर भारतीय मुद्रा, जिसमें एक पैसा, दो पैसा, तीन पैसा, 10 पैसा, 20 पैसा शामिल हैं। उनके संग्रह में जिंबाब्वे का दस लाख डॉलर का नोट भी शामिल है। बिजेंद्र सिंह के अनुसार देश में आए वित्तीय संकट के दौरान वहां की सरकार ने कुछ समय के लिए इस नोट को जारी किया था।


हिसार। कला अध्यापक बिजेंद्र सिंह को विदेशी मुद्राओं का संग्रह करने का शौक परिवार के भरण पोषण के लिए छोड़ना पड़ा। उनके पास मुगल काल, ब्रिटिश काल की भारतीय मुद्राओं के अलावा करीब 200 देशों की मुद्राओं का संग्रह है। जिसे उन्हाेंने काफी जतन से जुटाया था, लेकिन पारिवारिक दायित्व को निभाने के लिए शहर के जनता मार्केट में खुद अपने संग्रह में रखी मुद्रा बेचने को मजबूर हैं।
बता दें कि अभी हाल ही में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर शिक्षा विभाग ने कला अध्यापकों को हटा दिया। ढाणी पीरावाली में तैनात कला अध्यापक बिजेंद्र सिंह का नाम भी हटाए गए शिक्षकों की सूची में है। विभाग द्वारा हटाए जाने से पहले पूर्व उन्होंने करीब 11 साल तक शिक्षा विभाग में नौकरी की है।


मुगल काल तक की मुद्राओं का संग्रह
बिजेंद्र सिंह के पास करीब 200 देशों की मुद्राओं का संग्रह है, जिसमें नोट व सिक्के दोनों शामिल हैं। इसके अलावा उनके पास ब्रिटिश काल, आजादी से पहले देश के अलग-अलग राज्यों की मुद्राएं, विदेशी मुद्रा कला मुगल काल की मुद्राएं भी हैं। इस संग्रह को तैयार करने में उन्हें दो साल का समय लग गया।
अपने मुद्रा संग्रह की प्रदर्शनी भी लगा चुके हैं बिजेंद्र
बिजेंद्र सिंह के मुताबिक करीब तीन साल पहले नेपाल घूमने गए थे। इस दौरान उन्होंने पशुपति मंदिर के दर्शन के बाद से वहां की मुद्रा खरीदी थी, तब से उन्हें अलग-अलग देशों की मुद्रा एकत्रित करने का शौक पैदा हो गया। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से संपर्क कर अलग-अलग देशों की करेंसी एकत्रित करनी शुरू की। वह अपने संग्रह की स्कूल में प्रदर्शनी भी लगा चुके हैं।

संग्रह में दस लाख डॉलर का नोट
बिजेंद्र सिंह द्वारा लगाई गई स्टॉल पर काफी लोग आ रहे हैं और इन मुद्राओं के बारे में जानकारी लेने के साथ-साथ खरीद भी रहे हैं। खासतौर पर भारतीय मुद्रा, जिसमें एक पैसा, दो पैसा, तीन पैसा, 10 पैसा, 20 पैसा शामिल हैं। उनके संग्रह में जिंबाब्वे का दस लाख डॉलर का नोट भी शामिल है। बिजेंद्र सिंह के अनुसार देश में आए वित्तीय संकट के दौरान वहां की सरकार ने कुछ समय के लिए इस नोट को जारी किया था।

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