शासक रणनीति

यहां याद रखना चाहिए कि गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता कानून में संशोधन लाते समय कहा था कि बांग्लादेशी लोग अवैध तरीकों से इतनी बड़ी तादाद में आए हैं भारत में कि 'दीमक की तरह' फैल गए हैं। इस बयान के बाद आ गया था कोरोना का दौर, सो न शासक रणनीति नागरिकता कानून (सीएए) को लागू करने की जरूरत महसूस की नरेंद्र मोदी की सरकार ने और न बातें हुईं अवैध घुसपैठियों की। स्पष्ट हो रहा है कि बुलडोजर नीति तबसे बनने लगी थी और अब उस पर अमल होने लगा है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को अगर आपने सुना होगा टीवी पर पिछले हफ्ते, तो संबित पात्रा को सुना होगा यह कहते हुए कि जहांगीरपुरी में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलिम बहुत बड़ी तादाद में बसे हुए हैं और यही लोग थे, जिन्होंने हनुमान जयंती के जुलूस पर पत्थरों से हमला किया था।
राजस्थान में मुगल राजपूत सम्बन्ध
इस पोस्ट में हम आप को राजस्थान में मुग़ल और राजपूत के सम्बन्ध, akbar ki rajput niti, mughal rajput relations, mughal rajput relations in hindi, mughal rajput sambandh, mughal rajput marriage, के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करगे।
- मुगल – राजपूत सम्बन्ध भारत में मुगल वंश का शासन 1526 ई. से प्रारम्भ होता है। जब पानीपत के प्रथम युद्धमें मुगल शासक बाबर ने दिल्ली सल्तनत के सुल्तानइब्राहिम लोदीको हराया।
- भारत मेंमुगल वंशका शासन 1526 ई. से 1857 ई. तक रहा। इस काल में सभी मुगल शासकों ने राजपूती रियासतों के भिन्न-भिन्न प्रकार के सम्बन्ध स्थापित किये।
- बाबरएवं राणा-सांगा के मध्य वर्चस्व की लड़ाई थी तो अकबरसुलह-ए-कुल नीति एवं वैवाहिक सम्बन्धों को स्थापित कर राजपूती शासकों के साथ सम्बन्ध स्थापित किए।
बाबर एवं राणा सांगा
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- 1526 ई. में खुरासान से आये मुगल आक्रांता बाबरने भारत पर आक्रमण किया। उस समय दिल्ली पर इब्राहिम लोदी का शासन था किंतु भारत में मेवाड़ एवं मारवाड़प्रबल राज्यों की श्रेणी में आते थे।
- बाबर के आक्रमणके समय मेवाड़पर महाराणा सांगाका तथा मारवाड़पर राव गांगा का शासन था।
- 1526 ई. के युद्ध में बाबरकी सहायता के वादे से पीछे हटने के कारण बाबर राणा सांगा से नाराज हो गया एवं दिल्ली पर अधिकार करने के बाद बाबर ने राणा सांगा पर अधिकार जमाने हेतु आक्रमण किया।
बाबर एवं राणा सांगा के युद्ध
- बयाना का युद्ध
- 16 शासक रणनीति शासक रणनीति फरवरी, 1527 यह युद्ध बाबर एवं राणा सांगा के मध्य लड़ा गया। बाबर की तरफ से इस युद्ध में मेहंदी ख्वाजा एवं सुल्तान मिर्जा ने नेतृत्व किया।
- इस युद्ध में राणा सांगा ने बाबर की सेना को बुरी तरह परास्त किया।
- यह युद्ध 17 मार्च, 1527 को खानवा (रूपवास, भरतपुर) शासक रणनीति नामक स्थान पर राणा सांगा एवं मुगल सम्राट जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर के मध्य लड़ा गया।
- बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी में खानवा के युद्ध का प्रमुख कारण पानीपत युद्ध में राणा सांगा के सहयोग शासक रणनीति न करने की नीति को माना है।
- राणा सांगा ने इस युद्ध से पहले ‘पाती पेरवन’ की राजपूत परम्परा को पुनर्जीवित किया।
- पाती पेरवन नामक राजपूती परम्परा के तहत राजस्थान के प्रत्येक सरदार व महाराणा को अपनी ओर से युद्ध में शामिल होने का निमन्त्रण देना होता था।
- मुगल शासक बाबर ने इस युद्ध को ‘जिहाद’ (धर्म-युद्ध) की संज्ञा दी।
- बाबर ने इस युद्ध में ‘गाजी’ की उपाधि धारण की।
- कर्नल टॉड के अनुसार खानवा युद्ध में राणा सांगा की सेना में 7 उच्च श्रेणी के राजा, 9 राव एवं 104 बड़े सरदार सम्मिलित हुए।
- राणा सांगा अंतिम हिन्दू राजा थे जिनके सेनापतित्व में सभी राजपूत जातियाँ विदेशियों को भारत से निकालने के लिए शामिल हुई थीं।
सोची-समझी रणनीति
तवलीन सिंह: पिछले हफ्ते दिल्ली के जहांगीरपुरी में जो बुलडोजर चले, वे चलाए गए थे एक सोची-समझी नीति के तहत। धीरे-धीरे यह बात साफ दिखने लगी है। यह नीति बनाई गई है भारतीय जनता पार्टी के सबसे ऊंचे गलियारों में। वरना केंद्रीय गृहमंत्री के दफ्तर में मिलने न गए होते भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता, कुछ प्रवक्ता। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक गृहमंत्री से मिलने के बाद इन लोगों ने पत्रकारों को बताया कि यूरोप के कुछ देशों में जैसे 'नो-गो' क्षेत्र बनाए हैं प्रवासी नागरिकों ने, ऐसा कुछ होने लगा है भारत में और इसको रोकना जरूरी हो गया है। इन लोगों ने प्रवासी शब्द के पहले मुसलिम नहीं कहा, लेकिन समझने वाले समझ गए कि ये प्रवासी कौन हैं। यथार्थ यह है कि स्वीडेन और बेल्जियम में इन मुसलिम प्रवासियों ने साबित किया है स्थानीय अधिकारियों शासक रणनीति पर कई बार हमले करके कि उनकी नीयत जिहादी किस्म की है। क्या ऐसा अपने देश में हो रहा है? क्या यही कारण है कि खरगोन के बाद दिल्ली में बुलडोजर चले हैं?
मध्यकालीन भारत/मुग़ल वंश
भारत में मुगल राजवंश महानतम शासनकाल में से एक था। मुगल शासकों ने हज़ारों लाखों लोगों पर शासन किया। भारत एक नियम के तहत एकत्र हो गया और यहां विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक और राजनैतिक समय अवधि मुगल शासन के दौरान देखी गई। पूरे भारत में अनेक मुस्लिम और हिन्दु राजवंश टूटे, और उसके बाद मुगल राजवंश के संस्थापक यहाँ आए। बाबर, जो महान एशियाई विजेता तैमूर लंग का पोता था। १५०४ ई.काबुल तथा १५०७ ई. में कंधार को जीता था तथा बादशाह (शाहों का शाह) की उपाधि धारण की १५१९ से १५२६ ई. तक भारत पर उसने ५ बार आक्रमण किया तथा सफल हुआ १५२६ में जब उसने पानीपत के मैदान में दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान "इब्राहिम लोदी"(लोदी वंश) को हराकर "मुगल वंश" की नींव रखी। [१]
परिचय और पानीपत का युद्ध संपादित करें
बाबर तैमूर लंग का पौत्र था और विश्वास रखता था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश का पूर्वज था। बाबर भारत में प्रथम मुगल शासक थे। उसने दिल्ली पर फिर से तैमूरवंशियों की स्थापना के लिए १५२६ में पानीपत के प्रथम युद्ध के दौरान इब्राहिम लोदी के साथ संघर्ष कर उसे पराजित किया और इस प्रकार मुगल राजवंश की स्थापना हुई। [२]
राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत काफी शक्तिशाली बन चुके थे। राजपूतों ने एक बड़ा-सा क्षेत्र स्वतंत्र कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होने की चाहत दिखाई। बाबर की सेना राजपूतों की आधी भी नहीं थी। १७ मार्च १५२७ में खानवा की लड़ाई राजपूतों तथा बाबर की सेना के बीच लड़ी गई। इस युद्ध में राणा सांगा के साथ मुस्लिम यदुवंशी राजपूत उस वक़्त के मेवात के शासक खानजादा राजा हसन खान मेवाती और इब्राहिम लोदी के भाई मेहमूद लोदी थे। इस युद्ध में मारवाड़, अम्बर, ग्वालियर, अजमेर, बसीन चंदेरी भी मेवाड़ का साथ दे रहे थे। राजपूतों का जीतना निश्चित था पर राणा सांगा के घायल होने शासक रणनीति पर घायल अवस्था मे उनके साथियो ने उन्हें युद्ध से बाहर कर दिया और एक आसान-सी लग रही जीत उसके हाथों से निकल गई। बाबर ने युद्ध के दौरान अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए शराब पीने और बेचने पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर शराब के सभी पात्रों को तुड़वा कर शराब न पीने की कसम ली। उसने मुस्लिमों से "तमगा कर" न लेने की भी घोषणा की। तमगा एक प्रकार का व्यापारिक कर था, जो राज्य द्वारा लिया जाता था।
चंदेरी का युद्ध संपादित करें
मेवाड़ विजय के बाद बाबर ने अपनी सैना को विद्रोहियों का दमन करने पूर्व में भेजा क्योंकि अफ़गानों का स्वागत और समर्थन बंगाल के शासक नुसरत ने किया था। इस लाभ के कारण अफ़ग़ानों ने अनेक स्थानों से मुगलों को निकाल दिया था। बाबर अफ़ग़ान विद्रोहियों के दमन के लिए चंदेरी पर आक्रमण करने का निश्चिय कर लिया। चंदेरी के राजपूत शासक मेदनी राय ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था और अब चंदेरी मैं राजपूत सत्ता का पुनर्गठन भी होने लगा था। चंदेरी पर आक्रमण करने का निश्चय बताता है कि बाबर की दृष्टि में राजपूत संगठन शासक रणनीति अफ़गानों की अपेक्षा अधिक गंभीर था अतः वह मुगल शासन के लिए राजपूत शक्ति को नष्ट करना अधिक आवश्यक समझता था। चंदेरी का अपना एक अलग ही व्यापारिक तथा सैनिक महत्व था वह मालवा तथा राजपूताने में प्रवेश करने के लिए सबसे उचित स्थान था। बाबर की चंदेरी पर आक्रमण करने गयी सेना राजपूतों द्वारा पराजित हो गयी थी। इस कारण बाबर स्वयं युद्ध के लिए गया क्योंकि यह संभव है कि चंदेरी राजपूत शक्ति का केंद्र बन जाए। उसने चंदेरी के विरुद्ध लड़ने के लिए २१ जनवरी १५२८ की तारीख चुनी क्योंकि उसे चंदेरी की मुस्लिम जनता का बड़ी संख्या में समर्थन प्राप्त होने की आशा थी और जिहाद के द्वारा राजपूतों तथा इन मुस्लिमों का सहयोग रोका जा सकता था। उसने मेदनी राय के पास शांति पूर्ण रूप से चंदेरी को समर्पण कर देने का संदेश भेजा और शमशाबाद की जागीर दी जाने की शर्त रखी। मेदनी राय ने प्रस्ताव टुकड़ा दिया। राजपूतों ने भयंकर संग्राम लड़ा और राजपूती वीरांगनाओं ने जौहर किया। विजय के बाद बाबर ने चंदेरी का राज्य मालवा सुल्तान के वंशज अहमद शाह को दे दिया और उसे आदेश दिया कि वह २० लाख दाम प्रति वर्ष शाही कोष में जमा करते रहे। [५] [६]
वह प्रथम राजपूत शासक जिसने अपनी रणनीति मे दुर्ग के स्थान पर जंगल और पहाडी क्षेत्रो को अधिक महत्व दिया था ?
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सोची-समझी रणनीति
तवलीन सिंह: पिछले हफ्ते दिल्ली के जहांगीरपुरी में जो बुलडोजर चले, वे चलाए गए थे एक सोची-समझी नीति के तहत। धीरे-धीरे यह बात साफ दिखने लगी है। यह नीति बनाई गई है भारतीय जनता पार्टी के सबसे ऊंचे गलियारों में। वरना केंद्रीय गृहमंत्री के दफ्तर में मिलने न गए होते भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता, कुछ प्रवक्ता। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक गृहमंत्री से मिलने के बाद इन लोगों ने पत्रकारों को बताया कि यूरोप के कुछ देशों में जैसे 'नो-गो' क्षेत्र बनाए हैं प्रवासी नागरिकों ने, ऐसा कुछ होने लगा है भारत में और इसको रोकना जरूरी हो गया है। इन लोगों ने प्रवासी शब्द के पहले मुसलिम नहीं कहा, लेकिन समझने वाले समझ गए कि ये प्रवासी कौन हैं। यथार्थ यह है कि स्वीडेन और बेल्जियम में इन मुसलिम प्रवासियों ने साबित किया है शासक रणनीति स्थानीय अधिकारियों पर कई बार हमले करके कि उनकी नीयत जिहादी किस्म की है। क्या ऐसा अपने देश में हो रहा है? क्या यही कारण है कि खरगोन के बाद दिल्ली में बुलडोजर चले हैं?