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भालू भावना

भालू भावना
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कमोडिटीज वीक अहेड: थैंक्सगिविंग वीक में ऑयल कमजोर रह सकता है

यह एक ऐसा सवाल है जिसे क्रूड व्यापारी गंभीरता से पूछ रहे हैं क्योंकि चीन में कोविड-19 सुर्खियों में बाजार में गिरावट आई है और नए सप्ताह की शुरुआत में तेल की कीमतों में फिर से गिरावट आ रही है जो यूएस थैंक्सगिविंग हॉलिडे के कारण कम होगा।

बुधवार की फ़ेडरल रिज़र्व बैठक मिनट —गुरुवार की छुट्टी से ठीक पहले आ रही है—बाजारों के लिए मुख्य भालू भावना आकर्षण हैं और वे व्यापारियों को बढ़त पर रख सकते हैं क्योंकि वे केंद्रीय बैंक की दर की गति के किसी भी संकेत की तलाश में हैं बढ़ोतरी धीमी हो सकती है। यदि वास्तव में इस तरह के संकेत हैं, तो "किंग डॉलर " आगे की जमीन खो सकता है, जिससे तेल जैसी डॉलर-मूल्य वाली वस्तुओं को राहत मिलती है।

इसके अलावा, वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण खरीदारी अवधि शुक्रवार को शुरू होती है, जो अमेरिकी खुदरा विक्रेताओं के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी: ब्लैक फ्राइडे की घटना जो परंपरागत रूप से शुक्रवार के एक दिन बाद होती है और खुदरा क्षेत्र के खरीदारी के अवसर से पहले अनौपचारिक रूप से शुरू हो जाती है। क्रिसमस।

नन्हे बच्चों का VIDEO हुआ वायरल, मां भालू ने सड़क पार कराती आई नजर

एक मां अपने बच्चे से जितना प्यार करती है, उतना शायद ही कोई किसी से करता हो. सिर्फ इंसानों में नहीं, बल्कि जानवरों में भी यह भावना कूट-कूट कर भरी हुई है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| एक मां अपने बच्चे से जितना प्यार करती है, उतना शायद ही कोई किसी से करता हो. सिर्फ इंसानों में नहीं, बल्कि जानवरों में भी यह भावना कूट-कूट कर भरी हुई है. मां की ममता का उदाहरण पेश करने वाले कई वीडियो सोशल मीडिया पर आए दिन वायरल (Viral Video) होते रहते हैं. एक ऐसा ही वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें एक मां भालू अपने नन्हे बच्चों (Bear Cubs) को सड़क पार कराती नजर आ रही है. इस वीडियो को देख सोशल मीडिया यूजर्स यह कहने पर मजबूर हो गए हैं कि इंसानों को भी इससे सीख लेने की जरूरत है. इस वीडियो को भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service) अधिकारी सुशांत नंदा (Susanta Nanda) ने ट्विटर पर शेयर किया है, जो तेजी से वायरल हो रहा है.

बच्चे को अकेला देखकर लोगों का पसीजा दिल, भालू के बच्चे को अब गांव वाले पाल रहे भालू भावना हैं

Villagers care and love with bear child

बहुत सारे लोगों को जानवरों से प्यार नहीं होता है जिसकी वजह से मनुष्य और जानवर के बीच रिश्ता नहीं बन पाता है। लेकिन वहीं कई लोगों को पशु-पक्षी से बेहद प्यार होता है। कभी-कभी लोग पशुओं के साथ अपने बच्चों के जैसा हीं व्यवहार करतें है और उन्हें खूब प्यार और स्नेह भालू भावना देते हैं। आज की यह कहानी मानव और पशु के बीच के प्रेम की पराकाष्ठा करने वाली है।

हाल हीं में एक खबर सामने आई है जिसमें एक गांव के लोग भालू के बच्चे को अपने हाथ से दूध पिलाते नजर आ रहे हैं। उनका यह मनोहर दृश्य सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। आइये जानते हैं पूरी कहानी…

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गांव के लोगों का मनाना है कि मां की कथित भावना ने उन्हें जंगल का चयन न कर गांव के पास जन्म स्थान का चयन करने के लिए प्रेरित किया। मादा भालू सूर्य उदय होने से पहले अपने बच्चे को छोड़कर एक तय समय पर उनके पास वापस लौट आती है।

वन अधिकारियों की देखभाल में गांव के एक बुजुर्ग मनुष्य को भालू के बच्चों को भालू भावना दो बार दुध पिलाने का कार्य सौंपा है। वन्यजीव विशेषज्ञ प्रभात दूबे के कहा, “भालू को उसके शावकों के लिए सुरक्षित जगह लगी होगी। शायद कुछ सप्ताह के बाद या शक्ति प्राप्त करने के बाद दोनों शावक प्राकृतिक वन भालू भावना निवास के लिए जा सकते हैं।”

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कुत्ता, हविष्य, माँ सीता… ‘स्त्री विमर्श’ के नाम पर रामायण का उपहास, राहुल गाँधी के फैन की किताब से उद्धरण: जानें एक श्लोक दिखा कर कितना कुछ छिपाया

क्या गांधारी ने महाभारत के बाद शोक करते हुए श्रीकृष्ण को जो श्राप दिया, उसे 'स्त्री विमर्श' की श्रेणी भालू भावना में देखा जाएगा या नहीं? कुंती के हर एक आदेश का पाँचों पांडव पालन करते थे, इसे 'स्त्री विमर्श' में लाया जाएगा या नहीं? कई बार कटु वचन द्रौपदी ने युधिष्ठिर को भी कहा है उनकी अति-उदारता देख कर, इसे 'स्त्री विमर्श' में रखा जाएगा या नहीं? कैकेयी के एक वचन से इतिहास बदल गया, इसे 'स्त्री विमर्श' का हिस्सा मान कर इस पर विश्लेषण होगा या नहीं?

संस्कृत साहित्य एक अन्य विद्वान हैं नित्यानंद मिश्रा, जो इस भालू भावना प्रसंग को समझाते हुए नाट्य के रसों के बारे में बताते हैं, जिसमें अस्थायी रूप से आने वाले ‘श्रृंगार रास’ के शंका भाव के बारे में बताया गया है। वो बताते हैं कि वियोग श्रृंगार रस इस प्रसंग में आता है, जबकि कुत्ते और हविष्य वाले श्लोक में ‘करुण भाव/रस’ है। व आगे समझाते हैं कि करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है और इस वचन को सुन कर सीता और वहाँ मौजूद वानर-भालू को शोक हुआ।

‘स्त्री विमर्श’ और ‘Literal Meaning’ उठाने का चक्कर: धर्मग्रंथों की आलोचना कीजिए, पर उपहास नहीं

क्या गांधारी ने महाभारत के बाद शोक करते हुए श्रीकृष्ण को जो श्राप दिया, उसे ‘स्त्री विमर्श’ की श्रेणी में देखा जाएगा या नहीं? कुंती के हर एक आदेश का पाँचों पांडव पालन करते थे, इसे ‘स्त्री विमर्श’ में लाया जाएगा या नहीं? कई बार कटु वचन द्रौपदी ने युधिष्ठिर को भी कहा है उनकी अति-उदारता देख कर, इसे ‘स्त्री विमर्श’ में रखा जाएगा या नहीं? कैकेयी के एक वचन से इतिहास बदल गया, इसे ‘स्त्री विमर्श’ का हिस्सा मान कर इस पर विश्लेषण होगा या नहीं?

मार्कण्डेय मुनि जब ये कथा सुना रहे हैं, वो द्वापर युग का समय है। ये घटना त्रेता युग भालू भावना की है, जिसे वाल्मीकि ने मूल रूप से लिखा है। वेद व्यास द्वारा भालू भावना रचित महाभारत, जिसे उनके शिष्य वैशम्पायन सुना रहे हैं, उसमें मार्कण्डेय मुनि जो कह रहे हैं – ये वो प्रसंग है। क्या इसके ‘Literal Meaning’ को भालू भावना कहीं से उठा कर कहीं रख कर समझ लेना इतना आसान है? गोस्वामी तुलसीदास ने इसका जिक्र करना उचित नहीं समझा, उन्होंने नहीं लिया। ये फिर अलग काल की बात हो गई।

जनता के बीच बुरी चर्चा से बचाने के लिए, एक शासक के साथ-साथ पति धर्म निभाने के लिए – ‘हृदय प्रिया’ के लिए राम ने किया सब

अगर समीक्षा ही करनी है तो ये भी तो हो सकता है कि राम ने जनता तरह-तरह की बातें न करे, इसीलिए ऐसा कहा। इस प्रसंग के दौरान सृष्टि के पाँचों तत्व और स्वयं ब्रह्मा आकर कहते हैं कि सीता पवित्र है और आप उन्हें ग्रहण कीजिए। राम राजा हैं, अतः निवेदन उन्हीं से किया जाता है, सारा पराक्रम उन्होंने भालू भावना ही दिखाया है। जहाँ तक राम के चरित्र की बात है, लक्ष्मण से लेकर वानर-भालू तक इसके साक्षी हैं। भगवान श्रीराम ने साधारण मनुष्य की तरह युक्ति लगा कर प्रजा को तरह-तरह की बातें करने से रोका, ताकि सीता को अपमान न झेलना पड़े – ये भी तो इस ‘दारुण वचन’ का कारण हो सकता है?

राम ने अपने कुल के लिए, अपने राज्य के लिए ये सब किया, अपनी पत्नी और खुद के लिए – इसका ये अर्थ भी तो हो सकता है। उन्होंने रावण का वध कर संसार का कल्याण किया, वो सिर्फ खुद के हित के लिए नहीं गए थे। एक शिक्षक इस प्रसंग को इस तरह से भी तो समझा सकता था न? एक शिक्षक ये भी बता सकता था कि राम ने इस प्रसंग में सीता के लिए देवताओं का प्रमाण लेकर न सिर्फ जनता और इतिहास को चुप कराया, बल्कि ये भी जता दिया कि उनके व्यक्तिगत हित से ज्यादा संसार का कल्याण महत्वपूर्ण है।

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