मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है

मुद्रा के राज्यीय सिद्धान्त की आलोचना- इस सिद्धान्त की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गयी है-
मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है?
इसे सुनेंरोकेंविदेशी विनिमय-दर (Foreign Exchange Rate)- मुद्रा-मूल्य के विदेशी विनिमय दर से अभिप्राय, एक देश की मुद्रा के बदले में जितनी विदेशी मुद्रा की इकाइयाँ प्राप्त होती हैं, वे उस मुद्रा का मूल्य कहलाती है।
इसे सुनेंरोकेंमुद्रा के मूल्य से सामान्य तात्पर्य है कि आप उससे क्या खरीद सकते हैं, कितना खरीद सकते हैं और भविष्य में हम क्या कर सकते हैं। मूद्रा का मूल्य माल और सेवाओं के मूल्य की तरह ही इसके लिए मांग से निर्धारित होता है। डॉलर के मूल्य को मापने के तीन तरीके हैं। पहला यह है कि विदेशी मुद्राओं में डॉलर से कितना खरीद सकते हैं ।
इच्छुक मुद्रा क्या है?
इसे सुनेंरोकेंऐच्छिक मुद्रा यह वह मुद्रा है जिसे व्यक्ति प्राय: अपनी इच्छा से स्वीकार कर लेता है, किन्तु उसके अस्वीकार करने पर कानून द्वारा उसे इस मुद्रा को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
मुद्रा से आप क्या समझते हैं मुद्रा के विभिन्न कार्यों का वर्णन कीजिए?
इसे सुनेंरोकेंमुद्रा एक ऐसा मूल्यवान मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है रिकॉर्ड है या आमतौर पर वस्तुओं और सेवाओं के लिए भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाने वाला तथ्य है. यह सामाजिक-आर्थिक संदर्भ के अनुसार ऋण के पुनर्भुगतान के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है लेनदेन को सुविधाजनक बनाना.
मुद्रा गुणक क्या मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है है?
इसे सुनेंरोकेंNotes: किसी अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा पूर्ति और उच्च शक्तिशाली मुद्रा के स्टॉक का अनुपात मुद्रा गुणक कहलाता है।
मुद्रा क्या है Class 10?
इसे सुनेंरोकें(3) मुद्रा आपको आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या से भी बचाती है फर्ज़ करो एक कपड़े बेचने वाला गेहूँ खरीदना चाहता है। पहले तो उसे कपड़े खरदीने वाला व्यक्ति ढूँढना पड़ेगा और फिर उसे देखना पड़ेगा कि ऐसा व्यक्ति है। इस प्रकार इस लेन-देन में संयोगों की आवश्यकता पड़ती है।
इसे सुनेंरोकेंमुद्रा एक ऐसी वस्तु या माध्यम है जो मनुष्य को अपनी इच्छानुसार आर्थिक निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है, मुद्रा की सहायता से व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है. उपभोक्ता जिस वस्तु के लिए सबसे अधिक कीमत देने को तत्पर होता है। उन्ही वस्तुओं का उत्पादन बाजार में अधिक किया जाता है।
मुद्रा नहीं थी तब लोग आपसी लेनदेन कैसे करते थे?
इसे सुनेंरोकेंप्राचीन काल में इसे मुद्रा कहा जाता था। प्राचीन काल में जब लोगों को किसी चीज की आवश्यकता पड़ती थी, तब वे आपस में चीजों के आदान-प्रदान से अपनी जरूरत की चीजों को हासिल करते थे। मान लीजिए फल बेचने वाले को दूध की आवश्यकता होती और दूधवाले को फल की।
मुद्रा का मूल्य क्या है?
mudra मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है ka mulya kya hai मुद्रा का मूल्य के संबंध में अर्थशास्त्रियों द्वारा दो विचार प्रस्तुत किए गए हैं। पहले मत मे एण्डरसन एवं उनके समर्थकों द्वारा पुष्ट किया गया है, मुद्रा के निरपेक्ष मूल्य पर जोर किया गया है। इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मुद्रा के दो स्वरूप है- धातु मुद्रा एवं पत्र मुद्रा। सोने, चाँदी और बहुमूल्य धातु से बनी मुद्रा का मूल्य अधिक होगा जबकि पत्र मुद्रा या कागज मुद्रा का मूल्य न के बराबर ही होगा। वही दूसरी ओर कुछ अर्थशास्त्रियों का मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है मत है कि मुद्रा का मूल्य उसकी क्रयशक्ति के द्वारा निर्धारित होगा। मुद्रा की इकाई के बदले में कितनी वस्तुओं और सेवाओं का क्रय किया जा सकता है, यही मुद्रा की क्रयशक्ति है और यही मुद्रा का मूल्य है।
प्रो. राॅर्बटसन ने अपने पुस्तक में मुद्रा के मूल्य के सम्बन्ध में लिखा है, ‘‘मुद्रा की अपनी कोई उपयोगिता नहीं होती है। इसकी उपयोगिता इसके विनिमय मूल्य से उत्पन्न होती है।
मुद्रा का मूल्य के निर्धारक तत्व
- मुद्रा की मांग
- मुद्रा की पूर्ति
विनिमय के माध्यम के लिए मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है मुद्रा की मांग की जाती है। यह एक स्थिर विचारधारा है। प्रावैगिक विचारधारा के अनुसार मूल्य संचय के लिये मुद्रा की मांग की जाती है। स्थैतिक दशाओं के अन्तर्गत ‘‘मुद्रा की लेने देन मांग पर राष्ट्रीय आय के आकार का दो आयो के मध्य अवधि का: भुगतान प्रणाली का और साख के प्रयोग की सीमा जैसे तत्वो का प्रभाव पड़ता है।” उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय आय का आकार जितना बड़ा होगा, मुद्रा की सौदा मांग उतनी हो अधिक होगी। प्रावैगिक दशाओं में मुद्रा की माँग से आशय उस नकद राशि से है जो व्यक्ति अपने पास रखना चाहता है।
लार्ड कीन्स के अनुसार, मुद्रा की मांग से अभिप्राय तरलता अथवा नकदी की मांग से है। इस दृष्टिकोण को नकद शेष दृष्टिकोण भी कहा जाता है जिसे आगे विस्तृत रूप से सिद्धान्त के रूप में समझाया भी गया है।
मुद्रा के मूल्य का अर्थ | मुद्रा का मूल्य निर्धारण | मुद्रा मूल्य निर्धारण का वस्तु सिद्धान्त | मुद्रा का राज्यीय सिद्धान्त | मुद्रा मूल्य निर्धारण के वस्तु सिद्धान्त एवं राज्यीय सिद्धान्त
समस्त वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य जो समाज में बिक्री हेतु लायी जाती है, मुद्रा में निर्धारित किया जाता है, अतः वस्तुओं के मूल्यों से तात्पर्य वह मुद्रा राशि है जो उन वस्तुओं अथवा मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है सेवाओं के बदले देनी पड़ती है। परन्तु मुद्रा के मूल्य का क्या अर्थ है ? यदि यह कहा जाये कि 250 ग्राम आलू का मूल्य 50 पैसे है तो इस तथ्य का एक पहलू यह भी है कि दो रुपये में एक किलोग्राम आलू मिलते हैं, अर्थात् एक रुपये की क्रय-शक्ति, यदि आलू में मापी जाये तो, आधा किलोग्राम है। स्पष्टतः मुद्रा का मूल्य उसकी क्रय-शक्ति होता है।
(Commodity theory of the Determination the Value of Money)-
इस सिद्धान्त के अनुसार मुद्रा को एक मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है वस्तु माना जाता है तथा जिस प्रकार वस्तु के मूल्य माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है, उसी प्रकार मुद्रा का मूल्य भी इसकी माँग एवं पूर्ति के द्वारा निर्धारित होता है। जिस बिन्दु पर मुद्रा की माँग एवं पूर्ति का साम्य होगा, वही बिन्दु इसके मूल्य. निर्धारण का बिन्दु होगा। प्रो. राबर्टसन के अनुसार, “मुद्रा अनेक वस्तुओं में से एक है। अतः इसका मूल्य ठीक उन्हीं दो शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है, जो अन्य वस्तुओं के मूल्य को निर्धारित करती है।” यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि मुद्रा की माँग तथा पूर्ति से अभिप्राय उस वस्तु से है, जिससे मुद्रा बनती है। यदि मुद्रा स्वर्ण से बनी है तो मुद्रा का मूल्य स्वर्ण की माँग तथा पूर्ति के आधार पर निर्धारित होगा।
मुद्रा का राज्यीय सिद्धान्त
(State Theory of Money)-
इस सिद्धान्त के अनुसार मुद्रा का मूल्य राज्य द्वारा निर्धारित रहता है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. फ्रेड्रिक नैप द्वारा किया गया। प्रो. नैप के अनुसार, “मुद्रा की आत्मा इसकी इकाइयों में प्रयुक्त सामग्री में निहित नहीं है, बल्कि उन कानूनी अध्यादेशों में है जो उसके प्रयोग को नियमित करते हैं।” दूसरे शब्दों में, मुद्रा का मूल्य इसके निर्माण में प्रयुक्त किए गए गये पदार्थ से नहीं, बल्कि राज्यीय सत्ता से निर्धारित होता है। चूंकि आधुनिक काल में मुद्रा का निर्गमन एवं नियंत्रण सरकार द्वारा किया जाता है, अतः सरकार ही इसके मूल्य को निर्धारित करने की स्थिति में है। प्रो. नैप के कथनानुसार राज्य मुद्रा के मूल्य को निम्न प्रकार से निर्धारित करता है।
- वैधानिक स्वीकृति- मुद्रा को वैधानिक स्वीकृति देने से ही इसका मूल्य उत्पन्न होता है। यदि किसी पदार्थ को राज्य वैधानिक स्वीकृति प्रदान नहीं करता तो ऐसे पदार्थ को जनता कभी भी मुद्रा के रूप में स्वीकार नहीं करेगी। इसी वैधानिक स्वीकृति के ही कारण मुद्रा विनिमय का माध्यम बन जाती है, यहाँ तक कि भविष्य के सौदे भी मुद्रा के माध्यम से किए जाते हैं। इस तरह मुद्रा का मूल्य राज्य द्वारा प्रदान की गयी वैधानिक स्वीकृति के ही कारण होता है।
- मुद्रा-निर्गमन- मुद्रा के निर्गमन को नियमित एवं नियंत्रित करके भी राज्य मुद्रा के मूल्य को निर्धारित करता है। यदि राज्य मुद्रा मूल्य को बढ़ाना चाहता है तो वह मुद्रा की मात्रा में कमी करके ऐसा कर सकता है। वास्तव में, मुद्रा-निर्गमन राज्य के हाथों में एक ऐसा अस्त्र है, जिसके प्रयोग से वह चाहे जिस स्तर पर मुद्रा का मूल्य स्थिर कर सकता है।
- वस्तु-कीमत नियंत्रण- पूँजीवादी देशों में कभी-कभी असाधारण समयों में राज्य वस्तु-कीमत नियंत्रण (Price-Control) की नीति अपनाता है। अर्थात् विभिन्न प्रकार की आवश्यक वस्तुओं की कीमतें सरकार द्वारा निर्धारित कर दी जाती हैं। इस नीति द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सरकार मुद्रा के मूल्य को निर्धारित करती है।
अच्छी मुद्रा की कौन कौन सी विशेषताएं हैं?
मुद्रा की विशेषताएँ (Characteristics of Money)
- सामान्य स्वीकृति
- राज्य द्वारा निर्माण
- मूल्य-संचय का साधन
- हास के तत्व का अभाव
- नगण्य उत्पादन लागत
- मुद्रा का विनिमय मूल्य होता है
- अपने आप में मुद्रा व्यर्थ होती है
- प्रतिस्थापन-लोच का अभाव
मुद्रा से आप क्या समझते हैं मुद्रा के विभिन्न कार्यों का वर्णन कीजिए?
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंExplanation: मुद्रा के चार प्रमुख कार्य विनिमय का माध्यम, मूल्य का मापक, मूल्य संचय और भावी भुगतान का आधार है।
मुद्रा के कार्य क्या है?
मुद्रा को भी नियम के माध्यम के रूप में क्यों स्वीकार किया जाता है?
इसे सुनेंरोकेंमुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार करने के पीछे मुख्य कारण यह था, कि मुद्रा एक ऐसी वस्तु हो गई थी। जिसे लोग बिना किसी डर और संदेह के ग्रहण कर लेते थे और उसे ऋण मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है चुकाने तथा अन्य किसी प्रकार से प्रयोग में लिया जा सकता था। मुद्रा को लोग अपनी इच्छा से स्वीकार कर लेते थे और यह विनिमय का एक अच्छा माध्यम बन गया था।
मुद्रा के अवमूल्यन का अर्थ क्या है?
Key Points
- अवमूल्यन किसी अन्य मुद्रा, मुद्रा श्रेणी या मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है मुद्रा मानक की तुलना में किसी देश की मुद्रा के मूल्य का साभिप्राय नीचे की ओर समायोजन है।
- इस मौद्रिक नीति साधन का उपयोग निश्चित विनिमय दर या अर्ध-स्थिर विनिमय दर वाले देशों के लिए किया जाता है।
Additional Information
- एक या अधिक अन्य मुद्राओं की तुलना में, एक मुद्रा का अवमूल्यन तब होता है जब उसका मूल्य घटता है।
- मुद्रा अवमूल्यन का अर्थ है किसी देश के मुद्रा मूल्य में उसके मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा कमी, भारत के मामले में, यह RBI है।
- एक निश्चित विनिमय दर के तहत, एक मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता है। अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं में, मौद्रिक प्राधिकरण घरेलू मुद्रा के मूल्य को निर्धारित करता है।
- अवमूल्यन शब्द का प्रयोग तब किया जाता है, जब नियत दर प्रणाली के तहत सरकार मुद्रा के मूल्य को कम कर देती मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है है। यदि मुद्रा का मूल्य अस्थायी दर संरचना के अंतर्गत आता है तो इसे मूल्यह्रास कहा जाता है।