डॉलर ही क्यों?

कच्चा तेल भी डालेगा दबाव
रुपये में गिरावट की सबसे बड़ी वजह क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतें होंगी, जो चालू खाते के घाटे को बढ़ाने के साथ भारतीय मुद्रा को कमजोर करेगा. एक्सपर्ट का अनुमान है कि आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतें बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं, जो रुपये पर दबाव बढ़ाएंगी. ब्रोकरेज फर्म कोटक इंस्टीट्यूट का कहना है कि एनर्जी के दाम बढ़ने और ग्लोबल इकॉनमी में स्लो डाउन आने का दबाव भी भारतीय मुद्रा पर दिखेगा. इससे अक्तूबर में ही रुपया 83.50 तक गिर सकता है.
डॉलर के मुकाबले लगातार क्यों गिर रहा है रुपया, सरकार क्या कर रही समाधान?
बीते कई दिनों से रुपया डॉलर के मुकाबले अपने निम्नतम स्तर पर बना हुआ है। कल रुपया डॉलर के मुकाबले 82.26 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया था। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के द्वारा नीतिगत दरों में वृद्धि के कारण डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है जिसके फलस्वरूप पूरी दुनिया के मुद्रा में गिरावट देखी जा रही है।
महंगाई की मार
डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से महंगाई बढ़ रही है। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी कर रही है। इसके कारण आर्थिक गतिविधियां में भी मंदी देखी गई है। लोगों के रोजगार पर संकट दिख रहा है और बेरोजगारी बढ़ रही है। बाजार के स्थिर होने से मांग भी कम है जिसके कारण कारखानों में उत्पादन कम हो रहा है। इससे कंपनियों को घाटा का सामना करना पड़ सकता है।
Explainer : क्यों कोई देश जानबूझकर कमजोर बनाता है अपनी करेंसी, कहां और कैसे होता है इसका फायदा?
- News18Hindi
- Last Updated : October 24, 2022, 15:30 IST
हाइलाइट्स
अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा हाल में ही चीन दो बार कर चुका है.
एक बार 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी.
साल 2019 में फिर चीन ने डॉलर के मुकाबले युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी.
नई दिल्ली. अमूमन किसी देश की करेंसी के कमजोर होने को उसकी बिखरती अर्थव्यवस्था का सबूत माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ देश जानबूझकर अपनी मुद्रा को कमजोर बनाते हैं. एक बारगी तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल होता है कि जहां दुनियाभर के देश अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने की जुगत में लगे रहते हैं, वहीं कोई देश क्यों अपनी करेंसी को कमजोर बनाएगा, लेकिन यही सवाल जब बाजार और कमोडिटी एक्सपर्ट से पूछा तो जवाब चौंकाने वाले थे.
आईआईएफएल सिक्योरिटीज के कमोडिटी रिसर्च हेड अनुज गुप्ता का कहना है कि ज्यादातर ऐसे देश अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर बनाते हैं, जिन्हें निर्यात के मोर्चे पर लाभ लेना होता है. यानी अगर किसी देश की करेंसी कमजोर होती है, तो उसी अनुपात में उसका निर्यात सस्ता हो जाता है और उद्योगों के पास ज्यादा उत्पादन के मौके बनते हैं. दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर ग्लोबल लेनदेन डॉलर में होता है और जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो उसका उत्पादन भी डॉलर के मुकाबले सस्ता हो जाता है और ग्लोबल मार्केट में उसकी मांग बढ़ जाती है.
Rupee VS Dollar : डॉलर के मुकाबले रुपये में क्यों आ रही रिकॉर्ड गिरावट? आगे क्या है भारतीय डॉलर ही क्यों? मुद्रा का भविष्य?
- News18Hindi
- Last Updated : October 10, 2022, 12:22 IST
हाइलाइट्स
डॉलर के मुकाबले रुपया 82.70 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया.
नई दिल्ली. डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा लगातार नीचे गिर रही है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता जा रहा है. प्रतिदिन फॉरेक्स मार्केट खुलने के साथ ही रुपये में गिरावट का नया रिकॉर्ड बन जाता है. एक्सपर्ट की मानें तो आगे रुपये का रास्ता और भी ढलान की ओर जाता है.
सोमवार को मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 82.70 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया. इसकी सबसे बड़ी वजह इमर्जिंग मार्केट में आ रही गिरावट और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सख्त नियमों को माना जा रहा है. आज सुबह 9 बजे के आसपास भारतीय मुद्रा अपने पिछले बंद भाव से करीब 0.47 फीसदी टूटकर ट्रेडिंग कर रही थी, जबकि इसकी शुरुआत ही रिकॉर्ड 82.72 के निचले स्तर से हुई थी.
अमेरिका में बढ़ती बॉन्ड यील्ड भारतीय मुद्रा के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है, जिसमें पिछले 8 में से 7 सत्रों में उछाल दर्ज किया गया है. फिलहाल 10 साल की बॉन्ड यील्ड 7.483 फीसदी पर है, जो पिछले बंद से 3 आधार अंक ऊपर है. गौरतलब है कि बॉन्ड यील्ड और फॉरेक्स बाजार एक-दूसरे के अपोजिट साइड में चलते हैं.
डॉलर के मुकाबले ऑल टाइम लो लेवल पर पहुंचा रुपया, घटकर इतनी हुई कीमत
DollarVsRupee: डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। सोमवार 54 पैसे की गिरावट के बाद एक डॉलर की कीमत 81.63 रुपये हो गई है। जोकि अबतक का सबसे निचला स्तर है।इसस पहले सोमवार सुबह डॉलर के मुकाबले रुपये का भाव 81.47 रुपये पर आ गया था। डॉलर 20 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। वहीं, रुपये में आई ऐतिहासिक गिरावट के बाद व्यापारियों ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने गिरावट को रोकने के लिए डॉलर बेचे जाने की संभावना है।
Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?
डॉलर इंडेक्स में भले ही 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है. (File Photo)
What is US Dollar Index and Why it is Important : रुपये में मजबूती की खबर हो या गिरावट की, ब्रिटिश पौंड अचानक कमजोर पड़ने लगे या रूस और चीन की करेंसी में उथल-पुथल मची हो, करेंसी मार्केट से जुड़ी तमाम खबरों में डॉलर इंडेक्स का जिक्र जरूर होता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार की हलचल से जुड़ी खबरों में तो रेफरेंस के लिए डॉलर इंडेक्स का नाम हमेशा ही होता है. ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाज़मी है कि करेंसी मार्केट से जुड़ी खबरों में इस इंडेक्स को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि डॉलर इंडेक्स आखिर है क्या?
डॉलर इंडेक्स क्या है?
डॉलर इंडेक्स दुनिया की 6 प्रमुख करेंसी डॉलर ही क्यों? के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती या कमजोरी का संकेत देने वाला इंडेक्स है. इस इंडेक्स में उन देशों की मुद्राओं को शामिल किया गया है, जो अमेरिका के सबसे प्रमुख ट्रे़डिंग पार्टनर हैं. इस इंडेक्स शामिल 6 मुद्राएं हैं – यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक. इन सभी करेंसी को उनकी अहमियत के हिसाब से अलग-अलग वेटेज दिया गया है. डॉलर इंडेक्स जितना ऊपर जाता है, डॉलर को उतना मजबूत डॉलर ही क्यों? माना जाता है, जबकि इसमें गिरावट का मतलब ये है कि अमेरिकी करेंसी दूसरों के मुकाबले कमजोर पड़ रही है.
Petrol and Diesel Price Today: तेल कंपनियों को लगातार दूसरी तिमाही भारी नुकसान, क्या पेट्रोल और डीजल के बढ़े दाम
डॉलर इंडेक्स में किस करेंसी का कितना वेटेज?
डॉलर इंडेक्स पर हर करेंसी के एक्सचेंज रेट का असर अलग-अलग अनुपात में पड़ता डॉलर ही क्यों? है. इसमें सबसे ज्यादा वेटेज यूरो का है और सबसे कम स्विस फ्रैंक का.
- यूरो : 57.6%
- जापानी येन : 13.6%
- कैनेडियन डॉलर : 9.1%
- ब्रिटिश पाउंड : 11.9%
- स्वीडिश क्रोना : 4.2%
- स्विस फ्रैंक : 3.6%
हर करेंसी के अलग-अलग वेटेज का मतलब ये है कि इंडेक्स में जिस करेंसी का वज़न जितना अधिक होगा, उसमें बदलाव का इंडेक्स पर उतना ही ज्यादा असर पड़ेगा. जाहिर है कि यूरो में उतार-चढ़ाव आने पर डॉलर इंडेक्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है.
डॉलर इंडेक्स का इतिहास
डॉलर इंडेक्स की शुरुआत अमेरिका के सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने 1973 में की थी और तब इसका बेस 100 था. तब से अब तक इस इंडेक्स में सिर्फ एक बार बदलाव हुआ है, जब जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियन फ्रैंक को हटाकर इन सबकी की जगह यूरो को शामिल किया गया था. अपने इतने वर्षों के इतिहास में डॉलर इंडेक्स आमतौर पर ज्यादातर समय 90 से 110 के बीच रहा है, लेकिन 1984 में यह बढ़कर 165 तक चला गया था, जो डॉलर इंडेक्स का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. वहीं इसका सबसे निचला स्तर 70 है, जो 2007 में देखने को मिला था.
डॉलर इंडेक्स में भले ही सिर्फ 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इस पर दुनिया के सभी देशों में नज़र रखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है. न सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में होता है, बल्कि तमाम देशों की सरकारों के विदेशी मुद्रा भंडार में भी डॉलर सबसे प्रमुख करेंसी है. यूएस फेड के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2019 के दौरान अमेरिकी महाद्वीप का 96 फीसदी ट्रेड डॉलर में हुआ, जबकि एशिया-पैसिफिक रीजन में यह शेयर 74 फीसदी और बाकी दुनिया में 79 फीसदी रहा. सिर्फ यूरोप ही ऐसा ज़ोन है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार यूरो में होता है. यूएस फेड की वेबसाइट के मुताबिक 2021 में दुनिया के तमाम देशों में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिकी डॉलर का था. जाहिर डॉलर ही क्यों? है, इतनी महत्वपूर्ण करेंसी में होने वाला हर उतार-चढ़ाव दुनिया भर के सभी देशों पर असर डालता है और इसीलिए इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है.